उमेश जोशी

हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस का अविश्वास प्रस्ताव गिर गया और खट्टर की सरकार बच गई। अविश्वास प्रस्ताव पर मैराथन चर्चा के बाद मतदान में वही नतीजे सामने आए जिनका अनुमान लगाया गया था। गठबंधन सरकार का संख्याबल इतना मजबूत है कि उस पर किसी तरह के संकट की आशंका करना ही व्यर्थ है। भले ही कांग्रेस अपने इस दाँव में विफल हो गई लेकिन वो हार कर भी जीत गई है। काँग्रेस यह सारी कवायद किसानों का मनोबल बढ़ाने और नकली हमदर्दों का चेहरा बेनक़ाब करने के लिए कर रही थी जिसमें वो कामयाब हो गई। उन विधायकों के चेहरे का मुखौटा उतर गया जो किसानों के लिए नकली पीड़ा दिखा कर कराह रहे थे। काँग्रेस का यह दाँव हर हाल में विजय दिलाने वाला था। काँग्रेस इस दाँव से  किसानों की ‘समर्थन पुस्तिका’ में अपना नाम लंबे समय के लिए दर्ज करवाने में कामयाब हो गई है और यही काँग्रेस की असली जीत है।

अविश्वास प्रस्ताव गिरने के बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की प्रेस कॉन्फ्रेंस  के दौरान ही प्रदर्शनकारी किसान वहाँ पहुंच गए और कॉन्फ्रेंस में व्यवधान डाला। मुख्यमंत्री को प्रेस कांफ्रेंस बीच में ही खत्म करनी पड़ी। सुरक्षाकर्मियों ने मोर्चा संभाला। विधानसभा की सुरक्षा में इसे बड़ी चूक माना जा रहा है। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान हुड्डा ने चुनौतीपूर्ण अंदाज़ में कहा था कि सत्ता पक्ष के विधायक अपने इलाकों में घुस नहीं सकते। उनका कहने का अभिप्राय यह था कि विधानसभा में हार हो या जीत, लेकिन जनता के बीच सरकार हार चुकी है। उस विरोध की आँच आज विधानसभा तक पहुंच गई। अविश्वास प्रस्ताव पर हार के बाद किसान प्रदर्शनकारियों का विधानसभा तक पहुंचना एक मायने में काँग्रेस की जीत कह सकते हैं; विधायक भले साथ ना हों, किसान तो साथ हैं। 

बीजेपी के अपने 40 विधायक और सहयोगी दल जेजेपी के 10 विधायक हैं। कुल 50 सदस्यों  की गठबंधन सरकार को बहुमत साबित करने के लिए 45 सदस्यों की दरकार थी यानी बहुमत से पाँच सदस्य अधिक थे। इन परिस्थितियों में किसी अन्य से मदद की ज़रूरत ही थी फिर भी कुल सात निर्दलीयों में से पाँच निर्दलीय विधायकों ने सरकार को समर्थन देने का एलान कर दिया था। सरकार का संख्याबल 55 हो गया था। 

उधर, काँग्रेस के 30 विधायकों को महज दो निर्दलीय विधायक सोमवीर सांगवान और बलराज कुंडू समर्थन दे रहे थे। इस तरह अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में स्पष्ट तौर पर 32 विधायक थे। सभी को एहसास था कि अविश्वास प्रस्ताव 32 के मुकाबले 55 मतों से गिर जाएगा। आज मतदान के बाद हूबहू यही नतीजा रहा। इसका अर्थ यह है कि किसानों की अपील का जेजेपी और पाँच निर्दलीय विधायकों पर कोई असर नहीं हुआ और उन्होंने परोक्ष रूप से किसानों का साथ छोड़ने का एलान कर दिया है। जेजेपी के देवेंद्र बबली के कल के बयान और आज विधानसभा में दिखाए तेवरों से ऐसा लग रहा था कि वे मतदान के समय अपनी आत्मा की आवाज़ सुनेंगे और अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मतदान कर अपना रुख स्पष्ट कर देंगे लेकिन वे भी चूक गए और नतीज़ा वही 55-32 का ही रहा। 

देवेंद्र बबली अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सदन में उस समय आग बबूला हो गए थे जब स्पीकर ने उन्हें बोलने से रोक दिया था। इस पर उन्होंने यहाँ तक कह दिया था कि मैं इस्तीफा दे दूंगा। दरअसल, अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान देवेन्द्र बबली  सदन में अपने विचार रखना चाह रहे थे, लेकिन स्पीकर ने उन्हें टोक दिया। स्पीकर ने स्पष्ट कहा कि अापके लीडर ने आपका नाम चर्चा के लिए नहीं दिया है। इस बात पर  बबली ने भड़क गए कि यह कौन होते हैं उनको बोलने से रोकने वाले। अगर ऐसा है तो मैं इस्तीफ़ा दूंगा। इन तेवरों के बावजूद अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में मतदान करना बबली की किसी बड़ी मजबूरी को ज़ाहिर करता है।

पांच निर्दलीय विधायक अविश्वास प्रस्ताव पेश किए जाने से पहले ही एलान कर चुके थे कि वे सरकार की नीतियों से संतुष्ट हैं और सरकार के पक्ष में यानी अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में मतदान करेंगे। उनकी दुविधा को जनता बखूबी समझ रही है। किसानों के साथ हमदर्दी दिखाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में खड़े होना भी चाहें तो नहीं हो सकते। उन्होंने हाल में निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू की हालत देखी है। वे पाँच विधायक किसी भी स्थिति में कुंडू जैसी दुर्गति नहीं झेलना चाहते। 

 बलराज कुंडू ने बहुत संतुलित बयान देकर अविश्वास प्रस्ताव को समर्थन देने का एलान किया था। उन्होंने एक बार भी यह एहसास नहीं कराया कि सरकार ने उन पर बदले की कार्रवाई की थी इसलिए अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट करेंगे। उन्होंने कहा कि  कोई भी नेता एक भी फायदा किसानों के पक्ष में बता दे तो में बीजेपी के पक्ष में वोट डाल दूंगा। कुंडू ने परोक्ष रूप से यह बता दिया कि सरकार निकम्मी है और  इसका किसानों के हित में एक भी काम नहीं है।   

सबसे ज़्यादा तकलीफदेह रवैया हरियाणा लोकहित पार्टी के इकलौते विधायक गोपाल कांडा का रहा। उन्होंने लिखकर दे दिया था कि वे सरकार के साथ हैं लेकिन मतदान के समय उपस्थित नहीं रहेंगे, यानी गुड़ खाएंगे और गुलगुलों से परहेज करेंगे। कोई बता सकता है, या वे खुद ही बता दें कि मतदान के समय क्यों उपस्थित नहीं रहने का फैसला किया था। हालांकि अपने बयान के उलट वे मतदान के समय उपस्थित हो गए थे। कांडा किसी समय हुड्डा सरकार में मंत्री रहे थे; उनसे संबंध भी अच्छे ही रहे हैं, उन्हीं संबंधों का लिहाज कर हुड्डा के साथ खड़े हो जाते।

गोपाल कांडा ने लोगों की इस धारणा को सही साबित कर दिया कि वे बिना रीढ़ के नेता हैं। वे सिद्धांतों के बजाय लाभ की राजनीति के चैंपियन हैं। फ़ाइल खुलने का डर हो या पद पाने की लालसा, कुछ तो वजह रही है कि वे हुड्डा के साथ नहीं खड़े हुए।    

यह वही गोपाल कांडा हैं जो बीजेपी को समर्थन देकर सरकार बनवाने वालों की कतार में सबसे आगे खड़े थे। बहुमत से थोड़ी दूरी पर खड़ी बीजेपी को समर्थन परोसने के लिए सिरसा की सांसद सुनीता दुग्गल के साथ विमान से दिल्ली पहुंच गए थे। लेकिन मीडिया में भारी आलोचना के कारण बीजेपी को कांडा का समर्थन त्यागना पड़ा था। कांडा हैं कि उम्मीद नहीं छोड़ रहे हैं। 

 नेता प्रतिपक्ष भूपिंदर सिंह हुड्डा ने मांग की थी कि मतदान गुप्त हो लेकिन उनकी मांग नहीं मानी गई। जब व्हिप जारी हो जाता है तो खुला मतदान ज़रूरी हो जाता है ताकि आसानी से पता लग सके कि किस विधायक ने व्हिप का उल्लंघन किया है। 

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