इनेलो- जजपा के लिए अब अस्तित्व बचाने की चुनौती, छिन जाएगा चुनाव चिह्न और रिजनल पार्टी का दर्जा?

चुनाव में क्यों ‘बेअसर’ रहा इनेलो और जेजेपी का जाट-दलित समीकरण वाला गठबंधन?

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार जीत दर्ज कर बीजेपी जहां प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, वहीं दूसरी तरह इंडियन नेशनल लोकदल पर संकट के बादल छाने लगे हैं। विधानसभा चुनाव के नतीजों ने राजनीतिक पंडितों के साथ ही दलों को भी चौंकाया है। भाजपा ने अप्रत्याशित तरीके से इस चुनाव को जीता है तो वहीं कई राजनीतिक दलों के आगे बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है।

भाजपा पूर्ण बहुमत से सरकार बना चुकी है, वहीं अब दूसरी तरह इंडियन नेशनल लोकदल पर संकट के बादल छा गए हैं क्योंकि इनेलो को इस चुनाव में महज 4.14% ही मतदान हासिल हुआ था। अब पार्टी के चुनाव चिन्ह और क्षेत्रीय पार्टी के दर्जे पर खतरा मंडराने लगा है। मालूम रहे कि इनेलो की ओर से सीएम पद का चेहरा रहे अभय चौटाला अपनी ऐलनाबाद सीट भी नहीं बचा पाए थे जिस कारण इनेलो का बड़ा धक्का लगा है, उन्हें कांग्रेस उम्मीदवार भरत सिंह बेनिवाल से हार मिली है।

इनेलो इस बार केवल 2 सीटें ही जीत पाया

वहीं पुन: बता दें कि इस विधानसभा चुनाव में इनेलो को केवल 2 सीटें ही मिली हैं। अभय चौटाला के बेटे अर्जुन चौटाला को रानियां से और डबवाली से आदित्य को। लेकिन इनेलो आयोग के सिंबल बचाने के लिए पांच नियमों को पूरा नहीं कर पाई क्योंकि पार्टी 6 प्रतिशत से भी कम वोट मिले हैं।

कुछ भी हो इसमें कोई शक नहीं कि प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा तय करने वाले इनेलो के लिए अब अपना अस्तित्व बचाना भी मुश्किल हो गया है। चुनाव चिन्ह बचने के हालात भी काफी मुश्किल भरे लग रहे हैं, अब अगर पार्टी का निशान ही छीन गया तो पार्टी के लिए तो और भी मुश्किलें हो जाएंगी।

2018 से धीरे-धीर धरातल में जाता रहा इनेलो 

मालूम रहे कि सन् 2018 में परिवारिक कलह के कारणों से इनेलो टूट सा गया था क्योंकि अजय चौटाला और उनके दो बेटों दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला पार्टी से अलग हो गए थे और जननायक जनता पार्टी के नाम से अपनी एक अलग ही नई पार्टी गठित कर दी थी लेकिन भाजपा की आंधी में अब प्रदेश में दोनों पार्टियों के हालात खराब हो चुके हैं।

2019 में दस सीटों पर जीत हासिल करने वाली और साढ़े चार वर्षों तक भाजपा के साथ गठबंधन के तहत सरकार में शामिल रही जजपा का एक भी उम्मीदवार ऐसा नहीं है, जो दूसरे नंबर पर रहा हो। अधिकांश हलकों में पार्टी उम्मीदवारों की जमानत भी जब्त हो गई।

हरियाणा के चुनाव में जब इनेलो-बसपा और जेजेपी-आसपा (कांशीराम) गठबंधन बना तो कांग्रेस को सबसे ज्यादा डर इस बात का था कि उसके जाट और दलित समीकरण में सेंध लग सकती है लेकिन ऐसा नहीं हुआ और ये गठबंधन कांग्रेस को बड़ा नुकसान नहीं पहुंचा सके। जबकि हरियाणा में इन दोनों जातियों का मत प्रतिशत 46% के आसपास है। इनेलो और जेजेपी को जाट मतदाताओं की और बसपा और आसपा (कांशीराम) को दलित मतदाताओं की समर्थक पार्टी माना जाता है।

हरियाणा में किस जाति की कितनी आबादी

समुदाय का नाम आबादी (प्रतिशत में)

जाट 25 दलित 21 पंजाबी 8 ब्राह्मण 7.5 अहीर 5.14 वैश्य 5 राजपूत 3.4 सैनी 2.9 मुस्लिम 3.8

हरियाणा में 12 सीटें, जहां इनेलो-बसपा गठबंधन तीसरे स्थान पर रहा और इसके उम्मीदवारों ने जीत के अंतर से ज्यादा वोट हासिल किए, उनमें से केवल चार में कांग्रेस को बीजेपी से हार मिली जबकि आठ सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की।

इस विधानसभा चुनाव में इनेलो-बसपा और जेजेपी-आसपा (कांशीराम) का गठबंधन पूरी तरह से बेअसर रहा। पूर्व उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला उचाना कलां सीट पर पांचवें नंबर पर आए जबकि पिछली बार वह यहां 47 हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे।

चुनाव में इनेलो-बसपा गठबंधन को को सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली और इनेलो के प्रधान महासचिव अभय चौटाला 15 हजार से ज्यादा वोटों से ऐलनाबाद सीट से चुनाव हार गए। जेजेपी-आसपा (कांशीराम) का खाता भी नहीं खुला। 

इनेलो-बसपा को मिले ज्यादा वोट

हरियाणा में इनेलो-बसपा का वोट शेयर 5.96% रहा और यह जेजेपी-आसपा(कांशीराम) के 1.05% वोट शेयर से कहीं बेहतर था। जेजेपी ने 2019 में अपने पहले चुनाव में 10 सीटें जीती थी। जेजेपी का वोट शेयर केवल 0.9% रहा जबकि हरियाणा में पहली बार चुनाव लड़े आसपा (कांशीराम) को केवल 0.15% वोट मिले।

ऐसी सीटें जहां बीजेपी हारी और कांग्रेस जीती जबकि इनेलो-बसपा गठबंधन ने जीत के अंतर से ज्यादा वोट हासिल किए, उनमें आदमपुर, फतेहाबाद, हथीन, जुलाना, कालांवली, लोहारू, नारायणगढ़ और साढौरा शामिल थीं। ओलंपिक पहलवान विनेश फोगाट जुलाना से कांग्रेस की उम्मीदवार थीं।

ऐसी सीटें जहां पर कांग्रेस हारी और बीजेपी जीती और इनमें इनेलो-बसपा गठबंधन को जीत के अंतर से अधिक वोट मिले – असंध, बरवाला, नरवाना और यमुनानगर शामिल हैं। जेजेपी-आसपा (कांशीराम) को केवल एक सीट डबवाली में जीत के अंतर से ज्यादा वोट मिले, जहां इनेलो के आदित्य देवीलाल ने कांग्रेस के उम्मीदवार अमित सिहाग को 610 वोटों के मामूली अंतर से हराया। यहां से जेजेपी उम्मीदवार दिग्विजय सिंह चौटाला को 35,261 वोट मिले।

गिरता गया इनेलो का ग्राफ

पिछले कुछ विधानसभा चुनावों से इनेलो का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है। चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद बसपा की प्रमुख मायावती ने इनेलो पर हमला बोला और कहा कि जाट समाज के जातिवादी लोगों ने विधानसभा चुनाव में बसपा को वोट नहीं दिया। मायावती ने यह भी कहा है कि आगे से किसी भी राज्य में क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन नहीं किया जाएगा।

पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में इनेलो को मिली सीटें

राजनीतिक दल विधानसभा चुनाव 2009 में मिली सीट विधानसभा चुनाव 2014 में मिली सीट विधानसभा चुनाव 2019 में मिली सीट

कांग्रेस 40   15    29 बीजेपी 4     47   40 इनेलो   31   19   01 जेजेपी   –      –      10

हजकां(बीएल) 6   2   – अन्य    9    7     8

दूसरी ओर जेजेपी की हालत इस चुनाव में बहुत पतली हो गई है। लोकसभा चुनाव में भी जेजेपी एक प्रतिशत से कम वोट ला पाई थी। इनेलो और जेजेपी पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल के नाम पर वोट मांगती हैं और दोनों ही मूल रूप से हरियाणा की पार्टियां हैं और इस राज्य से बाहर इनका कोई आधार नहीं है।

लोकसभा और विधानसभा चुनाव में इन पार्टियों के प्रदर्शन के बाद इनके राजनीतिक भविष्य को लेकर भी सवाल खड़े होने लगे हैं।

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