खट्टर की वजह से अटकी भाजपा की लिस्ट, अमित शाह करेंगे लिस्ट फाइनल

राव इंद्रजीत सिंह को पांच सीट दी, मांग रहे हैं सात

गुटबाजी कांग्रेस से ज्यादा भाजपा में, मीडिया केवल कांग्रेस में ही दिखा रहा है

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। इसे लेकर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तैयारी तेज कर दी। चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी में खींचतान अब साफ नजर आ रही है। उम्मीदवारों की लिस्ट को लेकर दो दिग्गज नेता आमने-सामने आ गए हैं। भाजपा प्रत्याशियों की पहली लिस्ट को रोक दिया गया है। फिलहाल उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी नहीं की जाएगी। बता दें कि दिल्ली में गुरुवार देर शाम को बीजेपी केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक हुई और इसमें सभी 90 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों के नामों को लेकर चर्चा हुई। यह पहला मौका है जब नरेंद्र मोदी द्वारा की गई लिस्ट फाइनल होने के बाद उसे रोक दिया गया। इसके बाद ही मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली की बात पलटी? जो आपसे खींचातान का नमूना है।

हरियाणा में उम्मीदवारों की लिस्ट जारी होने से पहले ही भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई है। एक तरफ सीएम नायब सिंह सैनी हैं तो दूसरी तरफ प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली। दरअसल, मोहन लाल बड़ौली ने प्रत्याशियों की लिस्ट को लेकर कहा था कि सीएम सैनी लाडवा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे। इस पर मुख्यमंत्री ने ही अपने प्रदेश अध्यक्ष की बात पलट दी।

जानें सीएम सैनी ने क्या कहा?

सीएम नायब सिंह सैनी ने कहा कि किसने कहा कि वे लाडवा सीट से चुनाव लड़ेंगे। वे लाडवा से चुनाव नहीं लड़ेंगे। वे करनाल सीट से ही चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि वे प्रदेश अध्यक्ष हैं, उन्हें ज्यादा जानकारी होगी। रही बात प्रदेश के उम्मीदवारों की तो उनके बॉयोडाटा केंद्रीय चुनाव समिति को भेज दिए गए हैं, जहां इस बात का फैसला होगा कि कौन कहां से विधानसभा चुनाव लड़ेगा।

जानें प्रदेश अध्यक्ष ने क्या दिया था बयान?

आपको बता दें कि इससे पहले हरियाणा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली ने दिल्ली में कहा था कि सीईसी की बैठक में सभी 90 विधानसभा सीटों पर चर्चा हुई, कुछ को शॉर्टलिस्ट किया गया है। 2 दिन बाद फिर बैठक होगी तब निर्णय होगा। अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। हरियाणा में भाजपा की तीसरी बार सरकार बनेगी। मुख्यमंत्री लाडवा से चुनाव लड़ेंगे।

उपरोक्त बयानों से यह स्पष्ट जाहिर हो रहा है कि हरियाणा भाजपा में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा। सूत्र बताते हैं कि इस सब के पीछे कारण है मनोहर लाल खट्टर। जिद्दी प्रवृत्ति के मनोहर लाल खट्टर ने पहले ही हरियाणा भाजपा का भट्ठा बैठा दिया। वह केंद्र में जाने के बाद भी अपनी मनमानी और अपने लोगों को आगे लाने अब भी बाज नहीं आ रहे। लोकसभा चुनाव से पहले जैसे ही बीजेपी शीर्ष नेतृत्व को इसका भान हुआ तो उनकी जगह नायब सिंह सैनी की ताजपोशी की गई।

सूत्र बताते हैं की पहली बार देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लिए गए निर्णय को पलटा जा रहा है। नरेंद्र मोदी द्वारा हरियाणा प्रदेश के 55 उम्मीदवारों के नाम फाइनल कर दिए गए थे। भाजपा के चाणक्य अमित शाह तक खट्टर की निरंकुशता की बात पहुंची तो उन्होंने लिस्ट को रोक दिया। सूत्र यह भी बताते हैं कि मनोहर लाल खट्टर के द्वारा उतारे गए सभी उम्मीदवारों को अब मौका नहीं दिया जाएगा। मनोहर लाल खट्टर नहीं चाहते थे कि राव इंद्रजीत सिंह, रामबिलास शर्मा, ओमप्रकाश धनखड़ व अनिल विज सहित अन्य बड़े नेताओं को तवज्जों दी जाए। मोहनलाल बडोली का बयान अमित शाह की रणनीति का इशारा मात्र है।

जानकारी के अनुसार, अमित शाह ने बीजेपी में इस बार टिकट बंटवारे के लिए कुछ खास मापदंड तैयार किए हैं। इस बार चुनाव में पार्टी जातिगत समीकरणों को ध्यान में रख कर टिकट देगी। इस दौरान उम्मीदवारों का चयन उनकी जीतने की क्षमता और लोकप्रियता के आधार पर होगा। पार्टी इस बार नेताओं के बच्चों को भी टिकट दे कटी है।  एंटी इंकबेंसी की काट के लिए टिकटों पर कैंची भी चलाई जाएगी। जानकारी के अनुसार, 30 प्रतिशत विधायकों के टिकट भी कट सकते हैं। कई मंत्रियों का भी इस बार टिकट कट सकता है। बता दें कि हरियाणा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मोहनलाल ने चुनाव नहीं लड़ने की इच्छा जताई है।

दक्षिणी हरियाणा के दिग्गज राव इंद्रजीत सिंह अहीरवाल की 11 सीटे में मांग रहे थे। शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें 5 सीट देने पर सहमति जड़ी अन्य सीटों पर उनकी राय से पसंद के उम्मीदवार उतारे जाएंगे। पर वह 7 सीटों से कम पर सहमत नहीं हैं। शीर्ष नेतृत्व ने उनकी पुत्री आरती राव को लेकर कोई ना नूकर नहीं की थी, पर वह अपने विरोधियों को निपटाना चाहते हैं। यहां भी मनोहर लाल खट्टर ने पेच फंसा दिया था। खट्टर चाहते थे कि नरवीर सिंह जवाहर यादव तथा मनीष यादव को टिकट दिया जाए लेकिन राव इंद्रजीत सिंह यहां अपने समर्थकों को उतारना चाहते थे। राव नरवीर सिंह की मुखालफत संसदीय बोर्ड की सदस्य सुधा यादव ने भी की फल स्वरुप अमित शाह के हस्तक्षेप के बाद खट्टर के लोगों के नाम हटा दिए गए हैं और बादशाहपुर से सुधा यादव का नाम प्रस्तावित कर दिया गया जिस पर राव इंद्रजीत सिंह ने सहमति जता दी। राव इंद्रजीत सिंह को नारनौल, अटेली, बावल, कोसली तथा पटौदी की सीट दी गई है। बाकी सीटों पर राव की पसंद को तवज्जो दी जाएगी जिसमें से बादशाहपुर की सीट पर उन्होंने डा सुधा यादव पर सहमति जता दी है। सूत्र बता रहे हैं कि महेंद्रगढ़ से रामबिलास शर्मा का नाम फाइनल कर दिया गया है और राव ने उनके नाम पर भी सहमति जाता दी है। वह चाहते हैं कि उनके एक आदमी को गुरुग्राम से टिकट दिया जाए।

टिकटों को लेकर हरियाणा भाजपा में चल रही आपसी खींचतान अब खुलकर सामने आने लगी है। वही हरियाणा में कांग्रेस की आपसी लड़ाई इन दिनों काफी चर्चा में है। कहा जा रहा है कि वहां माहौल भले ही कांग्रेस के पक्ष में हो लेकिन ये लड़ाई कांग्रेस को डुबा सकती है। जैसे कि मध्य प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में हुआ था। कांग्रेस के बड़े नेता भी अपने बयानों और सक्रियता से ऐसी आशंकाओं को शह देते दिखाई देते हैं। इसके साथ ही यह भी जोड़ दिया जाता है कि माहौल पक्ष में होने के कारण अति-आत्मविश्वास भी कांग्रेस के लिए भारी पड़ सकता है। जैसा कि छत्तीसगढ़ में हुआ था।

दूसरी तरफ़ भाजपा के बारे में भी ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वह आपसी लड़ाई झगड़ों से दूर है। तरह-तरह की बगावत और विरोध की आवाजें उसके भीतर से भी दिखाई और सुनाई दे रही हैं। लेकिन इस सब की चर्चा बहुत ज्यादा नहीं है। विश्लेषण करने वालों का सारा नजला कांग्रेस पर ही गिर रहा है। 

दोनों पार्टियों की तुलना करते समय कहा जाता है कि भाजपा के पास एक सुगठित, सुव्यवस्थित संगठन है। यह संगठन बिलकुल नीचे तक है। बूथ इंचार्ज से लेकर पन्ना प्रमुख तक सारे पदों पर लोग तैयार हैं और उनकी भूमिका तय है। वे इन भूमिकाओं को पूरी ईमानदारी से भी निभाते हैं और जी-जान से जुटते भी हैं। यह भी कहा जाता है कि भाजपा हर समय चुनाव लड़ते रहने वाली दुनिया की एक सबसे बड़ी मशीन है। यह पार्टी का अनुशासन ही है जो भाजपा को भाजपा बनाता है।

इसके विपरीत कांग्रेस में संगठन नाम मात्र के लिए ही है। अगर हरियाणा को लें तो वहां शायद ब्लाॅक अध्यक्ष और जिला अध्यक्ष भी सभी जगह नहीं होंगे। कांग्रेस अपने-अपने क्षेत्र, जाति वगैरह के ताक़तवर नेताओं का ढीला-ढाला और अनुशासनहीन समूह भर है। वे संगठन या पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व छाते तले जमा रहते हैं और चुनाव हो या न हो एक दूसरे की टांग खींचते रहते हैं। अक्सर लगता है कि यही उनकी मूल प्रवृत्ति है। यह अनुशासनहीनता ही है जो कांग्रेस को न तो भाजपा बनने देती है और न ही कम्युनिस्ट पार्टी की तरह का कोई संगठन। 

आज हरियाणा में कांग्रेस के जिस तरह के गुटों की बात हो रही है वैसे गुट कांग्रेस में हमेशा से रहे हैं। पार्टी के नेता इसी गुटबाजी के साथ आगे बढ़ते रहे हैं। इसके बावजूद वे जीतते हैं और जब वे हारते हैं तो यही गुटबाजी उनकी हार की वजह भी बताई जाती है। अगर पिछले एक दशक को छोड़ दें तो इसी सब के साथ वे हारते कम रहे हैं जीतते ज्यादा। 

एक जमाने में शरद जोशी ने कांग्रेस पर एक व्यंग्य लिखा था – कांग्रेस क्या है। वे इसमें लिखते हैं कि कांग्रेस वह अखाड़ा है जिसमें जीतने वाला मंत्री और मुख्यमंत्री बनता है और हारने वाले को राज्यपाल का पद प्राप्त होता है।

अगर हम हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव को लें तो हरियाणा में यह चुनाव भाजपा ने अपनी पूरी संगठन शक्ति, अपनी अनुशासित चुनावी मशीनरी के साथ लड़ा था। जबकि कांग्रेस की तरफ से यह चुनाव उसे सभी अनुशासनहीन गुट लड़ रहे थे। नतीजे क्या रहे हम जानते हैं।

अभी जो हरियाणा में हो रहा है उसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस अपनी मूल प्रवृत्ति के हिसाब से ही चल रही है। जबकि भाजपा से सुनाई पड़ रहे बगावत के सुर यह बताते हैं कि पार्टी कम से कम हरियाणा में अपनी मूल प्रवृत्ति से हट गई है। 

अनुशासनहीनता दोनों में ही दिख रही है, लेकिन इस बार भाजपा की अनुशासनहीनता पार्टी के लिए कांग्रेस की अनुशासनहीनता से ज्यादा ख़तरनाक साबित होने वाली है। टिकट वितरण की घोषणा के बाद यह लड़ाई और तेज हो सकती है। अनेक लोग बगावत कर दूसरी पार्टियों के चुनाव चिन्ह या निर्दलीय मैदान में आकर भाजपा के लिए मुसीबत बन सकते हैं।

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