सुप्रीम कोर्ट ने गत माह चुनाव संचालन नियमावली के नियम 48 एम.ए. में हस्तक्षेप करने से किया इंकार — एडवोकेट हेमंत कुमार एडवोकेट हेमंत कुमार चंडीगढ़- मौजूदा जारी 18 वी लोकसभा आम चुनाव में छठे चरण में शनिवार 25 मई को देश के विभिन्न राज्यों की 58 लोकसभा सीटों पर, जिसमे हरियाणा की सभी 10 सीटें भी शामिल है, में वोटिंग के दौरान सभी सीटों पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ई.वी.एम.) के साथ वी.वी.पैट. (वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) सिस्टम का प्रयोग किया जाएगा. पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि वैसे तो निर्वाचन संचालन नियमावली 1961 में जुलाई, 1992 में उपयुक्त संशोधन कर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों ( ईवीएम) द्वारा वोटिंग करने के समस्त प्रावधान डाल दिए गए थे परन्तु इन मशीनों के साथ वी.वी.पैट. संलग्न करने संबंधी प्रावधान अगस्त, 2013 में डाले गये. वास्तव में 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने ही मतदान में वी.वी.पैट के प्रयोग को अनिवार्य घोषित किया था.5 वर्ष पूर्व अप्रैल- मई 2019 में 17वीं लोकसभा आम चुनाव में देश की सभी 543 सीटों पर मतदान में ईवीएम के साथ वी.वी.पैट का प्रयोग हुआ था. हेमंत ने बताया कि इस वी.वी.पैट प्रणाली में जब भी कोई मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए अपने पोलिंग बूथ में जाकर वोटिंग कम्पार्टमेंट में पड़ी ई.वी.एम. से मतदान करने के लिए अपनी पसंद के उम्मीदवार के नाम के सामने का नीला बटन दबाएगा तो उस मतदाता के वोट दर्ज होने के साथ साथ ही इसके उस ई.वी.एम. के साथ जुडी वी.वी.पैट. (जिसमे एक कागज़ की पर्चियां प्रिंट करने वाला प्रिंटर एवं ड्राप बॉक्स होगा) में से एक कागज़ की पर्ची उत्पन्न होगी जिसमे मतदाता द्वारा वोट किये गए उम्मीदवार की क्रम संख्या, उसका नाम एवं उसका चुनाव चिन्ह दिखाई देगा एवं इस कागज़ की पर्ची को प्रिंटर पर मौजूद पारदर्शी खिड़की के माध्यम से सात सेकेन्ड तक देखा जा सकेगा जिसके बाद यह कागज़ की पर्ची इसके साथ जुड़े ड्राप बॉक्स में स्वत: गिर जायेगी. उन्होंने आगे बताया कि अब प्रश्न यह उठता है कि अगर किसी मतदाता द्वारा ई.वी.एम. पर बटन दबाकर किसी उम्मीदवार को डाले गए वोट एवं इसके बाद वी.वी.पैट. में दिखाए जाने वाले उम्मीदवार के विवरण में अंतर पाया तो इस स्थिति में क्या होगा, इस बारे में उन्होने बताया कि चुनाव संचालन नियमावली , 1961 का नियम 49 एम.ए. इस स्थिति में प्रयोग में लाया जायेगा. ऐसी परिस्थिति में उस वोटर को उस पोलिंग बूथ/स्टेशन के प्रेसिडिंग अधिकारी को इस सम्बन्ध में दोनों में आये अंतर के बारे में सूचित करना होगा एवं इसके बाद वह अधिकारी इस बारे में उस वोटर को गलत सूचना देने पर गम्भीर कानूनी परिणाम भुगतने बाबत बताने के बाद उससे एक लिखित घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान लेगा. हेमंत ने बताया कि ऐसी लिखित घोषणा का प्रारूप भारतीय चुनाव आयोग द्वारा नवंबर, 2013 में के सभी राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियो को जारी कर दिया गया था जिसमे यह भी लिखा है की गलत सूचना देने पर उक्त वोटर को भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.) की धारा 177 (किसी लोक सेवक को झूठी सूचना देना) के अंतर्गत उसे अधिकतम 6 महीने की जेल अथवा एक हज़ार रुपए का जुर्मान या दोनों हो सकते है. हेमंत ने बताया कि अगर वोटर ऐसी लिखित घोषणा दे देता है, तो इसके बाद मतदान केंद्र का प्रेसिडिंग अधिकारी फॉर्म 17 ए में उस मतदाता के नाम से समक्ष दूसरी एंट्री करने के बाद उस वोटर से उसी ई.वी.एम. एवं वी.वी.पैट पर एक टेस्ट वोट करवाएगा जो की प्रेसिडिंग अधिकारी एवं उम्मीदवारों अथवा उनके वहां मौजूद पोलिंग एजेंटो के उपस्थिति में होगी. इस टैस्ट वोट में वोटर द्वारा डाली गयी वोट एवं उसके साथ उत्पन्न हुई वी.वी.पैट की पर्ची का निरक्षण किया जाएगा. अगर वोटर द्वारा ई.वी.एम. से दी गई वोट एवं वी.वी पैट में आये अंतर की बात उस टेस्ट वोट में साबित हो जाती है, तो प्रेसिडिंग अफसर तत्काल संबंधित लोक सभा क्षेत्र के रिटर्निंग अफसर को सूचित करेगा एवं उस वोटिंग मशीन से मतदान रुकवा देगा एवं रिट्रनिंग अफसर के आदेशों के अनुसार आगामी कार्यवाही करेगा. एडवोकेट ने बताया कि अगर टेस्ट वोट के दौरान ई.वी.एम. से डाले गए वोट एवं वी.वी.पैट से उत्पन्न पर्ची में कोई अंतर नहीं आता एवं दोनों में मिलान हो जाता है, तो प्रेसिडिंग अधिकारी इस बाबत फॉर्म 17 ए में उसी वोटर के नाम के समक्ष एक टिप्पणी कर टेस्ट वोट में जिस उम्मीदवार को टैस्ट वोट दिया गया है उसकी क्रम संख्या एवं नाम रिकॉर्ड करेगा एवं उस पर उस वोटर के हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान लेगा. ज्ञात रहे कि टेस्ट वोट द्वारा डाली गई सभी वोटो को मतगणना के दौरान कुल पड़े वैध वोटो में नहीं जोड़ा जाएगा. हेमंत ने बताया कि गत माह 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णय में उपरोक्त नियम 49 एम.ए. में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया जिससे इसे वैधता कायम है. इस नियम के अंतर्गत ई.वी.एम. से डाले गए वोट एवं उसके साथ संलग्न वी.वी.पैट. से उत्पन्न हुई कागज़ की पर्ची में अंतर आने की झूठी आपत्ति उठाने वाले वोटर पर कानूनी केस (अभियोजन) चलाया जा सकता है. कोर्ट से यह भी गुहार की गयी थी जब आपत्ति उठाने वाला वोटर टेस्ट वोट डालता तो वह गुप्त नहीं होती क्योंकि वह वोट प्रेसिडिंग अधिकारी और पोलिंग एजेंटो के समक्ष डाली जाती है एवं अगर उस टेस्ट वोट में ई.वी.एम. से डाले गए वोट एवं वी.वी.पैट. से उत्पन्न पर्ची में मिलान हो जाता है, तो इसी सबूत को उस वोटर के विरूद्ध प्रयोग किया जा सकता है जो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 (3 ) का उलंघन है जिसके अंतर्गत किसी व्यक्ति को स्वंय के विरूद्ध ही सबूत देने को बाधित नहीं किया जा सकता है. हालांकि एडवोकेट हेमंत का कहना है कि आई. पी. सी. की धारा 177 संज्ञेय अपराध नहीं है अर्थात इसमें पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार नहीं कर सकती एवं यह जमानती अपराध भी है. 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