भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। कल सायं हरियाणा भाजपा सरकार की ओर से सूचना प्राप्त हुई कि 15 मई को मंत्रीमंडल की मीटिंग मुख्यमंत्री ने बुलाई है। प्रश्न यह है कि आचार संहिता लगी हुई है। ऐसे में कोई जनहित की घोषणा तो हो नहीं सकती तो यह मीटिंग बुलाने का औचित्य क्या? विभिन्न प्रकार की चर्चाएं हैं। सबसे मुखर होकर जो बात आ रही है वह यह है कि जिस प्रकार वर्तमान में भाजपा से विधायकों का मोह भंग हो रहा है और राज्यपाल के पास कांग्रेस और जजपा ने पत्र लिखा है। ऐसे में यही चर्चा है कि मीटिंग इसी बारे में होगी कि विधानसभा सत्र बुलाकर विश्वास मत प्राप्त कर लिया जाए। यदि विश्वास मत प्राप्त नहीं होता है तो सरकार गिरकर राष्ट्रपति शासन की संभावनाएं अधिक हैं। कांग्रेस की सरकार बनने की संभावनाएं नगण्य बताई जा रही हैं।

इधर मुख्यमंत्री नायब सैनी और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल बार-बार यह कह रहे हैं कि हमारा पूर्ण बहुमत है। अनेक विधायक हमारे पास आने को तैयार हैं। यह भी समाचार प्राप्त हुए हैं कि जजपा के कम से कम 4 विधायक पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल से मीटिंग भी कर चुके। ऐसे में यह माना जा रहा है कि वे विधायक भाजपा के पक्ष में मतदान कर सकते हैं।

दूसरी ओर यह भी समाचार आए हैं कि देवेंद्र बबली को कमान सौंपी गई है कि वह जजपा के विधायकों को तैयार कर पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की जगह अन्य नेता जजपा का चुन लें और वह सरकार को समर्थन दे दें। इस प्रकार सरकार तो बच जाएगी लेकिन जजपा टूट जाएगी।

पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा एक ओर तो दावा करते हैं कि सरकार अल्पमत में है और वह इसे गिराकर दम लेंगे। दूसरी ओर वह यह भी कहते हैं कि जजपा भाजपा की बी टीम है। यदि जजपा भाजपा की बी टीम है तो सरकार कैसे गिरेगी? यह सवाल भूपेंद्र सिंह हुड्डा से पूछा जाना चाहिए।

इधर जजपा की ओर से भी यही कहा जा रहा है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा भाजपा की बी टीम है। तात्पर्य यह है कि विपक्ष एकजुट नहीं है और जब विपक्ष एकजुट नहीं है और मुद्दे पर बैठकर आपस में चर्चा नहीं करते तो सरकार कैसे गिरेगी?

पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर जिस विश्वास से कह रहे हैं कि अनेक विधायक भाजपा में आना चाहते हैं, उनके कहने के लहजे से ऐसा लगता है कि जैसे हर पार्टी के विधायक भाजपा में सम्मिलित होने को बेताब हैं।

खैर, बड़ा प्रश्न यह है कि यदि विधायकों को मुख्यमंत्री नायब सैनी और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल पर विश्वास होता तो वे भाजपा से समर्थन ही क्यों वापिस लेते? ऐसी स्थिति में प्रश्न तो पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल पर भी उठते हैं कि वह बिना किसी आधार के बात कर रहे हैं।

वर्तमान में जो स्थिति है, उससे यह तो लगता नहीं कि प्रदेश की जनता भाजपा के समर्थन में उस प्रकार है, जैसा भाजपाई कह रहे हैं। जनता में हर तबकेे से यदि पूछकर देखें तो वह सरकार से रूष्ट ही नजर आते हैं। ऐसी स्थिति में यह माना जा सकता है कि जो विधायक हैं, वे आगामी चुनाव भी लड़ेंगे और यदि भाजपा का समर्थन करेंगे तो जनता से उन्हें समर्थन कैसे मिलेगा?

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