चुनाव में वोट दिलाओं टिकट की बात बाद में अबकी बार ये नही चलने वाला

ऋषि प्रकाश कौशिक/महेश कौशिक भारत सारथी। रोहतक

पहले लोकसभा प्रत्याशी के चुनाव में पूरी ताकत लगाओ और उसके बाद आपकी टिकट की सिफारिस की जायेगी लेकिन स्थानीय नेताओं को भी बात सहज समझ आ चुकी है कि पिछले लोकसभा चुनाव में कुछ हाल ऐसा ही हुआ था कि स्थानीय नेताओं ने दीपेंद्र के चुनाव में काफी खर्चा किया और विधान सभा की बारी आई तो टिकट किसी और का थमा दिया जाता है और ये नेता ऐसे है जिनमें से अभी तक वो कांग्रेस की सरकार में कभी किसी पद पर नही रहे या स्पष्ट शब्दों में कहे तो वो कांग्रेस से कभी कोई फायदा नही लेने वाले नेता है जिन्होंनें कांग्रेस के लिए स्वयं की जेब ढ़ीली करने का काम किया है।

बहादुर गढ़, महम, कोसली, बेरी, इन चारों हलकों में फिलहाल दुसरी श्रेणी के नेता कांग्रेस के लिए मेहनत तो कर रहे है लेकिन बहादुरगढ़ और महम में राजेंद्र जून और आनंद सिंह दांगी के बेटे बलराम दांगी की टिकट की बात सार्वजनिक रूप से तय होने से कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का उत्साह ठंडा पड़ गया क्योंकि ये नेता कहीं ना कहीं अपनी टिकट के लिए लाईन में तो थे ही लेकिन पिछले दो तीन महीनों के कार्यक्रमों में जिस प्रकार राजेन्द्र जून और बलराम दांगी को प्रमोट किया गया उससे स्पष्ट हो गया कि राजेंद्र जून के बराबर खड़े नेता राजेश जून का पता काट दिया हो।

अक्सर रैलियों और जनसभाओं का खर्च और आदमी जोडऩे की जिम्मेदारी भी इन दुसरी पंक्ति के नेताओं के भरोसे छोड़ दी जाती है। ऐसे में जब टिकट मिलने की बात आती है तो इनको अगले पांच साल का झुंझना पकड़ा दिया जाता है और चुनाव में काम करने की बिन मांगी सलाह दे दी जाती है। यदि हम कांग्रेस पार्टी के रोहतक लोकसभा के तीन विधान सभा चुनावों की बात करे तो हालात ऐसे ही कुछ कुछ है। बहादुर गढ़, बेरी, झज्जर ये तीनों हलके ऐसे है जहां पुराने नेता इन सीटों पर कुंडली मारे बैठे है और स्थानीय सत्र पर दिन रात काम करने वाले नेताओं को भविष्य की कोई ज्योति दिखाई दे नही रही है।

यदि हम बहादुरगढ़ हलके की बात करे तो यहां ये वर्तमान विधायक राजेंद्र सिंह जून जो कि हलके के बड़े नेता है और इनके पिता सुरजमल भी कांग्रेस से विधायक रहे है। अभी फिलहाल राजेंद्र जून भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खासम-खास व सोनिया परिवार के कारोबारी भी सांझेदार बताये जा रहे है तो ऐसे में उनकी आने वाले चुनावों में टिकट की दावेदारी बहादुरगढ़ के अन्य कांग्रेसी टिकटार्थियों के भारी पड़ती जा रही है। बता दे कि यहां से कांग्रेस के नेता राजेश जून पिछले दस साल से कांग्रेस के लिए काम कर रहे है और स्थानीय कार्यकर्ताओं में मौजूदा विधायक से ज्यादा पकड़ बनाये हुए है। पिछले चुनाव में भी राजेश जून को अगले पांच साल का झुंझना पकड़ा कर मनाया गया था और अबकी बार भी हालत वही लग रहे है। ऐसे में राजेश जून व राजेंद्र जून की आपसी खींचतान का प्रभाव लोकसभा में पडऩे के पूरे पूरे आसार है। वहीं यदि बात बेरी विधानसभा क्षेत्र की जाये तो यहां भी कई बार कांग्रेस से विधायक बन चुके डाक्टर रघुबीर कादय़ान यहां से मौजूदा विधायक है।

बेरी विधानसभा से कुछ युवा टिकटार्थी बन कर रघुबीर काद्यान का विरोध कर चुके है। बेरी के साथ लगते बड़े गांव से डीघल से लोकसभा से पहले ही बेरी में विधान सभा प्रत्याशी बदलने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। डाक्टर रघुबीर काद्यान के विरोध ही बेरी में आयोजित रैली में आधी कुर्सी खाली रहने का मुख्य कारण बनी थी। वहीं झज्जर में स्थानीय नेताओं को साईड़ लगाकर गीता भुक्कल को झज्जर में नेता स्थापित करने की बात भी अब स्थानीय युवाओं को खटकने लगी है। गीता भुक्कल भी झज्जर से मौजूदा विधायक है लेकिन उन पर बाहरी होने के आरोप लगा अब स्थानीय लोग अपनी चौधर अपने हाथ में लेने की बात पर अड़ गये है। लोगों का कहना है कि रैलियों में हम लोग महज क्या सदा कुर्सी बिछाने का काम करते रहेगें। बता दे कि बहादुरगढ़, बेरी और झज्जर में इन तीनों विधायकों के नेतृत्व के विरोध को लेकर कांग्रेस पार्टी के लोगों ने अपना अलग से वोट बैंक बनाने का काम कर लिया है। राजनैतिक जानकारों का मानना है कि यदि इन हलकों में टिकट चाहने वाले नेताओं ने स्थानीय नेताओं को आईना दिखाने का काम कर दिया है तो लोकसभा चुनाव के परिणाम में भारी फेर बदल देखने को मिलेगा।

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