रोहतक सीट बचाने के लिए भाजपा को बदलनी होगी रणनीति, फिर से खेला ब्राह्मण कार्ड

जाट लैंड में सेंध के बिना नहीं चलेगा काम, अहीरवाल की कोसली करेगी जीत निश्चित

अशोक कुमार कौशिक 

देश आजाद होने के बाद रोहतक लोकसभा सीट पर 18 बार चुनाव हो चुके हैं। इन चुनावों में सर्वाधिक 11 बार कांग्रेस, 4 बार लोकदल अथवा जनता दल और 3 बार जनसंघ अथवा भाजपा जीतने में सफल रही। कांग्रेस के रोहतक लोकसभा सीट पर वर्चस्व का श्रेय हुड्डा परिवार को जाता है। इस परिवार की तीन पीढ़ियां 8 बार यहां से जीतकर लोकसभा पहुंची हैं। वर्ष 1952 व 1957 में रणबीर हुड्डा, वर्ष 1991, 1996, 1998 व 2004 में भूपेंद्र हुड्डा और वर्ष 2005, 2009 व 2014 में दीपेंद्र हुड्डा यहां से जीत हासिल कर चुके हैं।

जाटलैंड के नाम से प्रसिद्ध रोहतक लोकसभा इस बार भी चर्चा का विषय

भाजपा ने रोहतक लोकसभा सीट बचाने के लिए सभी संभावनाओं को तलाशने के बाद एक बार फिर से डॉ. अरविंद शर्मा को टिकट देकर ब्राह्मण कार्ड पर दांव खेल दिया है। पार्टी को इस सीट पर कब्जा बरकरार रखने के लिए जातिगत समीकरण बनाने पर पूरा जोर लगाना पड़ेगा। जाटलैंड के मतदाताओं का साथ मिले बिना भाजपा के लिए इस सीट पर जीत दोहराना आसान नहीं होगा। पिछले विधानसभा चुनावों की तरह अगर इस बार कोसली बड़ा मार्जिन नहीं दे पाया, तो जीत हासिल करने के लिए दूसरे हलकों में भाजपा को अच्छा प्रदर्शन करना होगा।

कभी हरियाणा की राजनीतिक राजधानी तो कभी जाटलैंड के नाम से विख्यात रोहतक लोकसभा सीट इस बार भी चर्चा में है। हुड्डा परिवार के इस सियासी गढ़ में एक बार फिर उन्हें निवर्तमान सांसद डॉ. अरविंद शर्मा से कड़ी चुनौती मिल रही है। इस लोकसभा क्षेत्र से हुड्डा परिवार ने 11 बार चुनाव लड़ा और 9 बार जीत हासिल की। वर्ष 1999 में भूपेंद्र हुड्डा और 2019 में दीपेंद्र हुड्डा को यहां से हार का मुंह देखना पड़ा था, जबकि रणबीर हुड्डा अजेय रहे थे। एक तरफ जहां कांग्रेस की तरफ से अभी टिकट की औपचारिक घोषणा होना शेष है। वहीं दूसरी तरफ अरविंद शर्मा अपने प्रचार में जुट चुके हैं। यह लोकसभा चुनाव हुड्डा परिवार के लिए अस्तित्व की लड़ाई भी माना जा रहा है। यही कारण है कि दीपेंद्र इस बार अपनी विरासत बचाने को लेकर आश्वस्त नजर आ रहे हैं। हालांकि 25 मई को होने वाली उनकी परीक्षा का परिणाम 4 जून को ही सामने आ पाएगा। इस बार जीत में कोसली का बड़ा योगदान होगा।

दोनों बार जीते रणबीर हुड्डा

वर्ष 1952 में कांग्रेस के रणबीर हुड्डा ने जमींदार पार्टी के हरिराम को 26 हजार 372 वोटों से हराया था। वर्ष 1957 में कांग्रेस के रणबीर हुड्डा ने निर्दलीय धजा राम को 26 हजार 615 मतों से परास्त किया। भारतीय जनसंघ के रामचंद को 46 हजार 144 वोट मिली थी। वर्ष 1962 में जनसंघ के लहरी सिंह ने कांग्रेस के रणधीर सिंह को 20 हजार 107 वोटों से हराया था। वर्ष 1967 में कांग्रेस के रणधीर सिंह ने भारतीय जनसंघ के रामसरूप को 55 हजार 596 वोटों से हराया था। वर्ष 1971 में भारतीय जनसंघ के मुख्तयार सिंह मलिक ने कांग्रेस के रणधीर सिंह को 4671 मतों से परास्त किया था।

हरद्वारी लाल और देवीलाल

वर्ष 1977 में भारतीय लोकदल के शेर सिंह ने कांग्रेस के मनफूल सिंह को 2 लाख 59 हजार 645 वोटों से हराया। वर्ष 1980 में जनता पार्टी सेक्युलर के स्वामी इंद्रवेश ने जनता पार्टी के शेर सिंह को 1 लाख 21 हजार 440 मतों से हराया, जबकि कांग्रेस के चांदराम तीसरे स्थान पर रहे थे। वर्ष 1984 में कांग्रेस के हरद्वारी लाल ने लोकदल के सरूप सिंह को 30 हजार 931 वोटों से हराया था, जबकि भाजपा के हुकम चंद गोयल को महज 22 हजार 207 वोट ही मिल पाए। वर्ष 1989 में जनता दल के देवीलाल ने कांग्रेस के हरद्वारी लाल को 1 लाख 89 हजार 5 वोटों के अंतर से हराया था।

भूपेंद्र हुड्डा की देवीलाल पर हैट्रिक

वर्ष 1991 में कांग्रेस के भूपेंद्र हुड्डा ने जनता दल के देवीलाल को 30 हजार 573 वोटों से परास्त किया, वहीं हरियाणा विकास पार्टी के इंद्र सिंह को 43804 तथा भाजपा के राजकुमार को 23802 वोटों से ही संतोष करना पड़ा। वर्ष 1996 में कांग्रेस के भूपेंद्र हुड्डा ने समता पार्टी के देवीलाल को 2664 वोटों से हराया। इस बार भाजपा के प्रदीप कुमार भी एक लाख 58 हजार 376 लेने में कामयाब रहे तथा निर्दलीय रमेश दलाल को 11439 वोट मिले थे। वर्ष 1998 में हुए कांटे के मुकाबले में कांग्रेस के भूपेंद्र हुड्डा ने हरियाणा लोकदल के देवीलाल को 383 वोटों के मामूली अंतर से हराते हुए जीत की हैट्रिक बनाई। भाजपा के स्वामी इंद्रवेश को भी एक लाख 30 हजार 895 वोट प्राप्त हुई।

1999 में इंद्र ने भूपेंद्र को हराया

वर्ष 1999 में इनेलो-भाजपा के कैप्टन इंद्र सिंह ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को 1 लाख 44 हजार 693 वोटों से हरा दिया। जबकि निर्दलीय अरविंद शर्मा को 27 हजार 265 वोट ही मिल पाई थी। वर्ष 2004 में कांग्रेस के भूपेंद्र हुड्डा ने भाजपा के कैप्टन अभिमन्यु को एक लाख 50 हजार 435 वोटों से हराया। इनेलो के भीम सिंह को एक लाख 5 हजार 640 वोट ही प्राप्त हुई।

उपचुनाव में दीपेंद्र जीते

भूपेंद्र हुड्डा के सीएम बनने के बाद दिए गए इस्तीफे के कारण वर्ष 2005 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा ने भाजपा के कैप्टन अभिमन्यु को 2 लाख 31 हजार 958 वोटों से हराया। इनेलो के बलवान सुहाग को 41 हजार 726 वोट ही प्राप्त हुई। वर्ष 2009 में कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा ने इनेलो-भाजपा के नफे सिंह राठी को 4 लाख 45 हजार 736 वोटों से हराया। बसपा के राजकुमार को 68 हजार 210 तथा हजकां के कृष्णमूर्ति हुड्डा को 20 हजार 472 वोट ही मिली थी।

2014 में जीत-2019 में हार

वर्ष 2014 में कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा ने भाजपा के ओमप्रकाश धनखड़ को एक लाख 70 हजार 627 वोटों से हराया था। हालांकि इनेलो के शमशेर खरखड़ा भी एक लाख 51 हजार 120 तथा आप के नवीन जयहिंद को 46 हजार 759 वोट प्राप्त हुई थी। वर्ष 2019 में भाजपा के डॉ. अरविंद शर्मा ने कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा को 7 हजार 503 वोटों से हरा दिया था। बसपा के किशन लाल पांचाल 38 हजार 364 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे। जजपा के प्रदीप देशवाल को 21 हजार 211 तथा इनेलो के धर्मबीर फौजी को महज 7158 वोट मिली थी।

कांग्रेस जल्द घोषित कर सकती है अपना उम्मीदवार 

रोहतक सीट से भाजपा के बाद कांग्रेस भी प्रत्याशी की घोषणा जल्द कर सकती है। अगर दीपेंद्र को मैदान से हटाया गया, तो उनके पिता भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भी मैदान में उतारा जा सकता है। हुड्डा रोहतक सीट से चार बार सांसद बन चुके हैं। उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा इस सीट पर वर्ष 2005 से लेकर 2019 तक सांसद रह चुके हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी लहर के बावजूद दीपेंद्र के सामने जाट प्रत्याशी के रूप में ओपी धनखड़ थे। अहीर बाहुल्य कोसली हलके ने ओपी धनखड़ का दिल खोलकर साथ दिया था, लेकिन जाट बाहुल्य हलकों में दीपेंद्र को मिली अच्छी बढ़त ने उन्हें सांसद बना दिया। गत लोकसभा चुनावों में जातिगत गणित बैठाते हुए भाजपा ने डॉ. अरविंद शर्मा के रूप में नए गैर जाट प्रत्याशी को मैदान में उतारा। तमाम सर्वे और पूर्वानुमान लगाते हुए दीपेंद्र की जीत को भाजपा भी सुनिश्चित मान रही थी। भाजपा ने परिणाम आने से पहले 9 सीटों पर ही जीत नजर आ रही थी। अकेले कोसली हलके ने भाजपा की झोली में एकमुश्त वोट डालकर दीपेंद्र की संभावित जीत को हार में बदल दिया था।

कोसली पर डोरे डालने पर लगाया जोर

गत लोकसभा चुनावों में अकेले कोसली के कारण दीपेंद्र की हार को देखते हुए पूर्व सीएम हुड्डा और उनके बेटे का शुरू से ही कोसली पर फोकस रहा है। दीपेंद्र को संभावित प्रत्याशी मानते हुए हुड्डा ने इस सीट पर वापसी करने के लिए भाजपा में सेंध लगाने का प्रयास पहले ही कर दिया था। पूर्व मंत्री जगदीश यादव और राव इंद्रजीत सिंह के खास समर्थक अनिल पाल्हावास को कांग्रेस ज्वाइन कराकर हुड्डा और उनके बेटे ने बड़ा गेम खेल दिया था। जाट वोट का डिवाइडेशन निभाएगा रोल

लोकसभा सीट पर जातिगत फैक्टर एक बार फिर बड़ा रोल अदा करने जा रहा है। जाट वोटों के बिखराव और नॉन जाट वोटों के एकीकरण से ही भाजपा को जीत दोहराने में कामयाबी मिल सकती है। अगर पार्टी को इस बार कोसली में नुकसान होता नजर आता है, तो उसे इसकी भरपाई के लिए दूसरे हलकों में वोट प्रतिशत बढ़ाने पर जोर लगाना पड़ेगा। इसके लिए पार्टी को अपने वह धुरंधर नेता प्रचार मैदान में उतारने होंगे, जिनका जाटलैंड में व्यापक प्रभाव माना जाता है।

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