देश के संविधान या सदन की कार्य- प्रक्रिया नियमावली में ऐसा कोई  उल्लेख नहीं — एडवोकेट

चंडीगढ़ – हरियाणा विधानसभा के मौजूदा बजट सत्र में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी  द्वारा प्रदेश में सवा चार वर्ष पुरानी भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार के विरूद्ध  लाए  गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा उपरान्त सदन में  मतदान नहीं हो पाया  क्योंकि प्रस्ताव पर  हुई  चर्चा के अंत में  जब मुख्यमंत्री मनोहर लाल उस पर बोल रहे थे, तो इसी बीच  कांग्रेस पार्टी के सभी  विधायकों  ने सदन से वाक-आउट कर दिया अर्थात वो अविश्वास प्रस्ताव पर   वोटिंग में हिस्सा लिए बगैर  ही सदन से बाहर चले गये जिस कारण  सदन में उपस्थित भाजपा, जजपा और उसके सहयोगी निर्दलीय एवं अन्य विधायकों द्वारा सर्वसम्मति से अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में मत देने  से अविश्वास प्रस्ताव गिर गया अर्थात  ख़ारिज हो गया. इससे पूर्व  प्रस्ताव पर बोलते हुए  मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने विपक्षी कांग्रेस पार्टी पर  कटाक्ष करते हुए  कहा कि उन्होंने  तीन वर्ष पूर्व मार्च,2021 में भी सदन में  कहा था कि उनकी सरकार के विरुद्ध विपक्षी कांग्रेस पार्टी को हर छ:-छ: महीने में सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाना चाहिए. 

बहरहाल, इस सबके बीच एक रोचक परन्तु  महत्वपूर्ण  प्रश्न यह उठता है कि क्या वास्तव में सदन में सरकार के विरूद्ध   विपक्षी पार्टी या पार्टियों  द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के सदन में गिरने या खारिज होने के 6 माह के अंतराल के बाद ही पुनः इसी प्रकार का अगला अविश्वास प्रस्ताव सदन में लाया जा सकता है.  

इस विषय पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट एवं कानूनी विश्लेषक हेमंत कुमार ने बताया कि न तो हमारे देश भारत के संविधान में और न ही हरियाणा विधानसभा के प्रक्रिया एवं  कार्य संचालन  नियमावली में कहीं ऐसा उल्लेख है कि एक अविश्वास प्रस्ताव गिरने या खारिज  के बाद दूसरा प्रस्ताव उससे  छ: महीने के अंतराल के बाद ही सदन में  लाया आ सकता है. हालांकि विश्व के कई लोकतान्त्रिक देशों में इस प्रकार की संसदीय व्यवस्था है परन्तु हमारे देश के  किसी विधि-विधान में  लिखित तौर पर ऐसा नहीं है.   देश की संसद के निचले  सदन अर्थात लोकसभा के  प्रक्रिया एवं  कार्य संचालन बनाये गये नियमों में भी एक अविश्वास प्रस्ताव के ख़ारिज या गिरने के छ: महीने बाद ही  ऐसा दूसरा प्रस्ताव लाने सम्बन्धी  उल्लेख नहीं है. 

उन्होंने  बताया कि  लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए न्यूनतम 50 सांसदों की आवश्यकता होती है अर्थात लोकसभा की कुल सदस्य संख्या अर्थात 543 के 10 प्रतिशत से भी कम सदस्य चाहिए होते हैं जबकि हरियाणा विधानसभा में  अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए न्यूनतम 18 विधायकों की  आवश्यकता अर्थात सदन  कुल सदस्य संख्या अर्थात 90 के 20 प्रतिशत सदस्य चाहिए होते हैं. 

बहरहाल, हेमंत ने यह भी  बताया कि वैसे भी अगर किसी गठबंधन सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव सदन में मतदान के बाद अथवा मतदान से पूर्व  विपक्षी पार्टियों द्वारा  वाक-आउट करने के फलस्वरूप   गिर  जाता है अर्थात खारिज हो जाता है और जैसे  उसके कुछ दिनों या सप्ताह बाद  उस  सरकार में शामिल   गठबंधन पार्टी  के सभी या कुछ  विधायक अथवा उस सरकार को  समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायक  अगर उस गठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापिस ले लेते हैं और उस सरकार से बाहर हो जाते हैं   जिससे सत्ताधारी दल अर्थात  गठबंधन के अल्पमत में आने के पुख्ता आसार हो जाएँ, तो क्या वैसी  परिस्थिति में उस अल्पमत सरकार को छ: माह का कार्यकाल मात्र इस आधार पर दिया जा सकता है कि उक्त अवधि के बाद ही उसके विरुद्ध ताज़ा  अविश्वास प्रस्ताव आ सकता है, ऐसा करना असंवैधानिक ही नहीं बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के भी विरुद्ध होगा.

हालांकि हेमंत का यह भी कहना है  कि  उक्त परिस्थिति में अगर सदन में स्पीकर ( जो सत्ताधारी पार्टी का ही होता है) छ: माह के अंतराल से पूर्व   विपक्षी दलों के अविश्वास प्रस्ताव  को संसदीय परंपराओं का हवाला देकर स्वीकार करने से इंकार कर दे, तो ऐसी परिस्थिति में विपक्ष राज्यपाल अथवा हाईकोर्ट  या सुप्रीम कोर्ट के  हस्तक्षेप  से उस अल्पमत गठबंधन  सरकार को सदन में फ्लोर टेस्ट करवाकर विश्वास मत (ट्रस्ट वोट) हासिल करने के लिए भी कह सकता है.

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