कॉरपोरेट मित्रों के मुनाफे के लिए कॄषि बजट में कटौती, सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं में कटौती और शिक्षा का बजट घटाया: अवीक साहा

 2 फरवरी 2024 – वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए अंतरिम बजट ने देश के आम नागरिकों को एक बार फिर निराश किया। बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी की मार झेल रही आम जनता जहां कुछ राहत की उम्मीद लगाए बैठी थी, वहीं मोदी सरकार के कार्यकाल के इस आखिरी बजट ने युवाओं, महिलाओं, अन्नदाताओं, गरीबों, और देश के साथ एक बार फिर धोखा किया।

पिछले पांच वर्षों की तरह, इस साल भी कृषि बजट साल में कटौती की गई। देश के कुल बजट के अनुपात के रूप में कृषि बजट आवंटन पिछले वर्ष के 3.20% (बजट अनुमान) और 3.13% (संशोधित अनुमान) से घट कर इस साल 3.08% (बजट अनुमान) रह गया। गौरतलब है कि 2019 में यह आवंटन 5.44% था। वहीं, 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात पर सरकार द्वारा एक बार फिर चुप्पी साध गई। देश में कृषि के संकट पर भी कोई ध्यान नहीं दिया गया जबकि इस साल कृषि विकास दर सिर्फ़ 1.8% रह गई है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी, के बारे में भी कोई जिक्र नहीं किया गया। पिछले वर्ष कृषि त्‍वरक कोष (एक्सीलेरेटर फंड) के जरिए 2516 करोड़ के निवेश का वादा किया गया था, जिसमें अब तक सिर्फ़ 106 करोड़ खर्च किए गए।

सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं में कटौती की गई। बजट अनुमान 55,050 करोड़ था, जो संशोधित अनुमान में 46,741 करोड़ रह गया। ग़रीबी रेखा की परिभाषा ही बदल कर गरीबी खत्म करने का झूठ परोसा गया। गरीबी दर मापने के लिए एनएसएस के घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण को पिछले दस वर्षों से नहीं करवाया गया। सरकार की कुल टैक्स आमदनी में अप्रत्यक्ष टैक्स यूपीए के जमाने में 25% होता था जो अब बढ़कर 45% हो गया है। इसका बोझ गरीबों पर पड़ेगा।

वित्तमंत्री द्वारा बजट भाषण में देश में बेरोज़गारी की भीषण समस्या के बारे मे कोई जिक्र नहीं किया गया। करोड़ों रोज़गार का जुमला एक बार फिर से दोहराया गया। शिक्षा का बजट, जो 2019-20 में बजट का 3.33% होता था, वह पिछले साल 2.51% तक गिर गया, वहीं संशोधित अनुमान में खर्च केवल 2.42% ही रह गया। एक लाख करोड़ रुपए के फण्ड की घोषणा की गई लेकिन उसके लिए बजट में कोई मद निर्धारित नहीं की गई।

 “मिशन शक्ति” एक जुमला बनकर रह गया है चूंकि पिछले साल 3144 करोड़ के बजट अनुमान की तुलना में वास्तविक खर्च 2326 करोड़ (संशोधित अनुमान) ही हुआ।  नारी सुरक्षा पर बजट की कटौती की गई। पिछले साल खर्च (संशोधित अनुमान) 1008 करोड़ हुआ जबकि, इस साल (बजट अनुमान) मात्र 955 करोड़ का है। “लखपति दीदी” का लक्ष्य बढ़ाकर 2 से 3 करोड़ घोषित

 कर दिया, लेकिन उसके लिए बजट नहीं।

वित्तमंत्री ने देश के व्यक्ति की औसत वास्तविक आय में 50% बढ़ोतरी का झूठ बोला। आंकड़े दिखाते है कि पिछले 5 वर्षों में मजदूरी और स्वरोजगार की आय में गिरावट आई है। वित्तीय अनुशासन के तमाम दावों के बावजूद बजट का घाटा काबू में नहीं आ रहा। बजट घाटे का औसत UPA के कार्यकाल में 4.63% था, जो भाजपा के कार्यकाल में 5.13% हो गया है और इस साल 5.8% तक पहुंच गया। वित्त मंत्री द्वारा देश पर बढ़ते कर्ज़ को भी छुपाया गया। IMF के अनुसार जीडीपी के अनुपात में कर्ज 81% हो गया है, जो 2027 तक 100% होने की संभावना है। 

पिछले पांच वर्ष के कार्यकाल में मोदी सरकार ने अगर किसी एक वर्ग के लिए काम किया है तो वह प्रधानमंत्री के कॉर्पोरेट मित्र है। वर्ष 2019 के बजट में ही कॉरपोरेट टैक्स में भारी कटौती की गई थी। दावा यह किया था कि इससे प्राइवेट निवेश बढ़ेगा, जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ। यूपीए सरकार के दौरान सरकार की कुल टैक्स कमाई का 40% कॉर्पोरेट टैक्स से आता था जो कि अब घटकर 27% रह गया है।

यह अंतरिम बजट पिछले 5 साल से मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों का ही एक और आईना है। इसका जवाब देने के लिए जनता को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह बीजेपी और मोदी सरकार का अंतिम बजट हो।

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