राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने गीता ज्ञान संस्थानम केंद्र में अंतरराष्ट्रीय रामलीला महोत्सव के तीसरे दिन का किया शुभारंभ। प्रदेश में 8400 स्कूलों के 11 लाख विद्यार्थियों ने रामलीला मंचन अभियान में की शिरकत। देश में संघर्ष के बाद बनने वाला है श्री राम मंदिर। गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद के प्रयासों से प्राचीन संस्कृति को सहेजने के लिए किया जा रहा है अंतरराष्ट्रीय रामलीला महोत्सव। वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक कुरुक्षेत्र 18 अक्टूबर : राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि मानव को सुख, शांति और आनंद की प्राप्ति के लिए नियमित रूप से राम-नाम का जाप करना चाहिए। इस राम-नाम के जाप को घर-घर तक पहुंचाने के लिए धार्मिक और समाज सेवी संस्थाओं को प्रयास करने होंगे। यह तभी संभव होगा जब रामलीला जैसे मंचों को सहेजने का काम किया जाएगा। इस प्राचीन संस्कृति और सभ्यता को सहेजने का काम गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज बखूबी कर रहे है। उन्ही के प्रयासों से ही धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र में पहली बार अंतरराष्ट्रीय रामलीला महोत्सव-2023 का आयोजन किया जा रहा है। राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय मंगलवार को देर सायं गीता ज्ञान संस्थानम केंद्र में अंतरराष्ट्रीय रामलीला महोत्सव-2023 के तीसरे दिन के कार्यक्रम का शुभारंभ करने के उपरांत बोल रहे थे। इससे पहले राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय, गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज, श्री जयराम आश्रम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी महाराज, डा. वेद प्रकाश टंडन, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने दीपशिखा प्रज्वलित करके विधिवत रूप से अंतरराष्ट्रीय रामलीला महोत्सव-2023 के तीसरे दिन का शुभारंभ किया। इस तीसरे दिन दिल्ली व एनसीआर स्कूलों के कलाकारों तथा अन्य क्षेत्रों से आए कलाकारों ने रामलीला में अपने-अपने पात्र का बखूबी अभिनय किया। इन कलाकारों की प्रस्तुति की राज्यपाल के साथ-साथ सभी मेहमानों ने जमकर प्रशंसा की और पंडाल में बैठे दर्शकों को अपने मोहपाश में बांधकर रखा। राज्यपाल बंडारु दत्तात्रेय ने कहा कि हमारे समाज में बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जीवन की गाथा का रामलीला उत्सव के रूप में हर वर्ष मंचन करके उन्हें याद करना बेहद धार्मिक एवं प्रेरणादायक महत्वपूर्ण कार्य है। इस धार्मिक एवं प्रेरणादायक मंचन के द्वारा आज के युवा पीढ़ी को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के संघर्ष, समर्पण, त्याग व तपस्या से परिपूर्ण, जीवन शैली, आदर्शों, सिद्धांतों, नैतिक मूल्यों, मानव कल्याण के लिए किए गए कार्यों के बारे में प्रेरित तथा देश की महान संस्कृति और सभ्यता से अवगत कराना है। हमें अपने अंदर स्थित बुराइयों रूपी रावण को मारने के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जीवन के सेवा धर्म, सदाचार, करुणा, प्रेम, सहानुभूति जैसे सद्गुणों को अपनाना बहुत जरूरी है। इस धार्मिक कार्यक्रम के आयोजन के लिए मैं गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज एवं रामलीला उत्सव कमेटी के पदाधिकारियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति सदा से ही वीरता व शौर्य की परिचायक रही है। प्रत्येक व्यक्ति और समाज के दिलो-दिमाग एवं रुधिर में वीरता का भाव प्रबल हो। इस उद्देश्य से ही हमारे समाज में हर वर्ष रामलीला का मंचन किया जाता है। यह उत्सव हमें याद दिलाता है कि बुराई कितनी भी बड़ी और शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में जीत सच्चाई की ही होती है। हमारे महान धार्मिक ग्रन्थ रामायण में इसी बात को साकार किया गया है। तुलसीदास ने रामचरितमानस के माध्यम से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र को प्रस्तुत किया था। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक मूल्यों को स्थापित किया, क्योंकि सामाजिक मूल्य व्यक्ति के हित और स्वार्थ से ऊपर होते हैं। श्रीराम ने भी सामाजिक मूल्यों की रक्षा के लिए उन्हें अपने जीवन में धारण किया। शबरी की भक्ति को पूरा करने के लिए उनके झूठे बेर खाकर भगवान श्रीराम सामाजिक समरसता के प्रतीक बने। श्रीराम ने अपने शासन काल में संपूर्ण प्रजा के सुख, शांति, समृद्धि, समानता, कल्याण की भावना से राम राज्य की स्थापना की। उन्होंने कहा कि भक्ति आन्दोलन का आरम्भ दक्षिण भारत में आलवारों एवं नायनारों से हुआ, जो कालांतर में (800 ई से 1700 ई के बीच) उत्तर भारत सहित सम्पूर्ण दक्षिण एशिया में फैल गया था। भक्ति आंदोलन का उद्देश्य हिन्दू धर्म एवं समाज में सुधार तथा इस्लाम एवं हिन्दू धर्म में समन्वय एवं आपसी सद्भाव स्थापित करना था। हमारे धार्मिक ग्रंथ रामायण से हमें एक अच्छा भाई, अच्छा पुत्र, अच्छा पति, अच्छा शासक व अच्छा मित्र बनने की प्रेरणा मिलती है। यदि हम इस पावन ग्रन्थ से प्रेरणा लेकर स्वार्थ को त्याग दें तथा दया, प्रेम व सहयोग की भावना से जीवन जीएं तो यह धरती स्वर्ग का स्वरूप ले सकती है। इसी संदर्भ में हम सबके लिए गर्व की बात है कि हमारी आस्था, श्रद्धा, विश्वास का प्रतीक राम मंदिर के निर्माण की देखरेख श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र द्वारा की जा रही है। अयोध्या में बन रहा राम मंदिर, राम जन्मभूमि के स्थान पर बनाया जा रहा है। रामायण के अनुसार, राम जन्मभूमि ही भगवान राम का जन्मस्थान है। यह मंदिर दुनिया के तीन सबसे बड़े हिन्दू मंदिरों में से एक होगा।गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि गीता ज्ञान संस्थानम केंद्र में पहली बार अंतरराष्ट्रीय रामलीला महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस रामलीला के मंच पर दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों से युवा और मंझे कलाकार रामलीला में बेहतरीन अभिनय कर रहे है। यह भारत वर्ष की प्राचीन संस्कृति है। इस संस्कृति को सहेज कर रखने का प्रयास किया गया है। इस प्रकार के धार्मिक कार्यक्रमों से युवा पीढ़ी को भगवान श्री राम के जीवन से प्रेरणा मिलेंगी और युवा पीढ़ी सही राह पर चलकर देश और प्रदेश के विकास में अपना योगदान दे सकते है। ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी ने कहा कि रामायण एक महान ग्रंथ है। इस पवित्र ग्रंथ से युवा पीढ़ी को प्रेरणा मिलती है। इस ग्रंथ से प्रेरित होकर ही गीता ज्ञान संस्थानम केंद्र में गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद के प्रयासों से पहली बार बड़े मंच पर रामलीला का मंचन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि देश की संस्कृति विश्व में सबसे रिच संस्कृति है। इस संस्कृति को सहेजकर एक अनोखा कार्य किया जा रहा है। इस मौके पर अतिरिक्त उपायुक्त अखिल पिलानी, विद्या भारती के संगठन मंत्री बालकिशन, विधा भारती के सह संगठन सचिव विजय नड्डा, आरएसएस के प्रांत सह कार्यवाह डा. प्रीतम सिंह, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. संजीव शर्मा, 48 कोस तीर्थ निगरानी कमेटी के चेयरमैन मदन मोहन छाबड़ा, केडीबी के पूर्व सदस्य विजय नरुला, समाजसेवी जितेंद्र ढींगड़ा, प्रदीप झांब, डीएसपी सुभाष चंद्र, डीएसपी प्रदीप कुमार सहित अन्य अधिकारीगण एवं गणमान्य लोग उपस्थित थे। Post navigation हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए मजबूत भारत जरूरी : दामू रवि जनसम्पर्क के क्षेत्र में करिअर की असीम संभावनाएंः डॉ. नरेद्र कुमार