धर्मपाल वर्मा चंडीगढ़ – हरियाणा और पंजाब देश के ऐसे राज्य हैं जहां खेलों से भी राजनीति चलती है। राजनीति में खेल को जरूरी माना जाना जाने लगा है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला हो भूपेंद्र सिंह हुड्डा और मौजूदा मुख्यमंत्री मनोहर लाल पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल हो या उनके पुत्र पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल इन सब ने खेलों का उपयोग राजनीति में जुनूनी तरीके से किया है। यह उनका विजन भी कहा जाता है। राजनीति में खेल होने चाहिए परंतु खेलों में राजनीति का होना किसी तरह से भी उचित नहीं माना जाता। हरियाणा और पंजाब में बहुत ऐसे राजनीतिक लोग हैं जो खेल के और अपनी शोहरत के दम पर राजनीति में आए और खुद को साबित भी किया। वह इसलिए कि खिलाड़ी मजबूत इच्छाशक्ति के ऐसे व्यक्ति होते हैं जो आसानी से हार नहीं मानते उनमें जीतने की, कुछ कर गुजरने की और खुद को साबित करने की ललक भी स्वाभाविक रूप में होती है , उनमें योग्यता भी होती है। पंजाब में भी और हरियाणा में भी अपने जमाने के विश्व स्तरीय खिलाड़ी रहे बाद में राजनीति में आए हॉकी में भारत की टीम के कप्तान रहे परगट सिंह और संदीप सिंह को खेल मंत्री बनाया गया है। इससे दोनों प्रदेशों को अपेक्षित लाभ भी मिल रहा है। हरियाणा के कुछ और खिलाड़ी ऐसे हैं जिन्होंने दुनिया में अपने हुनर का लोहा मनवाया, नाम कमाया और जिन्हें राजनीति में भी भाग्य आजमाने का मौका मिला परंतु विभिन्न कारणों से राजनीति में वह मुकाम नहीं हासिल कर पाए जिसके वे हकदार हैं। इनमें एक नाम है ओलंपियन योगेश्वर दत्त का। योगेश्वर दत्त ने दो विधानसभा चुनाव लड़े परंतु सफल नहीं हो पाए। इसके लिए उन्हें डीएसपी का पद भी छोड़ना पड़ा। योगेश्वर के समर्थक और शुभचिंतक यह महसूस कर रहे हैं कि बरोदा विधानसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण भाजपा और योगेश्वर को रास नहीं आए और वह 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव हार गए। उनके समर्थकों का यह मानना था कि जिस तरह से मुख्यमंत्री मनोहर लाल योगेश्वर को राजनीति में लाने की पक्षधर रहे हैं वैसे उन्हें सरकार में किसी महत्वपूर्ण पद पर आयोजित करने की पहल भी कर देंगे । चुनाव हारने के बाद बबीता फोगाट को सरकार में समायोजित किया गया तो उस समय योगेश्वर दत्त बरोदा उप चुनाव लड़ रहे थे। वे चुनाव जीत जाते तो भाजपा को बरोदा विधानसभा की जनता को और योगेश्वर दत्त को निश्चित तौर पर लाभ होता परंतु किसान आंदोलन के दौर में लड़े गए इस चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली तो यह माना जा रहा था कि योगेश्वर दत्त को किसी और महत्वपूर्ण पद पर जरूर समायोजित किया जाएगा परंतु अभी तक हरियाणा सरकार ने कहो या मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने ,कोई फैसला लिया नहीं है परंतु भविष्य में यह संभव है। योगेश्वर दत्त का समायोजन ब्राह्मण मतदाताओं को प्रभावित करने और इस बात का राजनीतिक लाभ लेने के लिए किया जाना उचित जान पड़ता है योगेश्वर व्रत दत्त को संपूर्ण हरियाणा में ब्राह्मणों के साथ समाज के सभी समुदायों के लोग बहुत अच्छे ढंग से प्रोत्साहित करते हैं। उन्हें पूरे हरियाणा में जनता में जो रिस्पांस मिलता है वह गजब का है। उन्हें हरियाणा में नए पहलवानों के प्रेरणा स्रोत के रूप में देखा जाता है क्योंकिउन्होंने बजरंग पुनिया जैसे पहलवानों को अपनी एकेडमी में तराशने का काम एक बड़ी उपलब्धि के रूप में किया है। उन्होंने खुद कई और अच्छे पहलवान तैयार किए हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अपने चहेते और चुनाव हार चुके कई नेताओं को सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर समायोजित कर यह संदेश देने का काम किया है कि वह अपने समर्थक नेताओं के हितों की सुरक्षा करने को प्राथमिकता देने कोई कंजूसी नहीं बरतते। ऐसे में योगेश्वर दत्त की एक कमी कमजोरी यही कही जा सकती है कि वह चुनाव नहीं जीत पाए परंतु एक ऊर्जावान युवा शानदार समन्वयक और मजबूत इच्छाशक्ति के व्यक्ति के रूप में ब्राह्मणों के प्रतिनिधि के रूप में उन्हें सरकार में किसी महत्वपूर्ण पद पर स्थापित करने से भारतीय जनता पार्टी को एक दो नहीं बहुत लाभ हो सकते हैं। वे जिस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं वहां भारतीय जनता पार्टी को ताकत मिलना भी एक टर्निंग प्वाइंट साबित हो सकता है। हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी में ब्राह्मण नेताओं में कौन मुख्यमंत्री के पक्ष में है कौन खिलाफ है यह बताने की जरूरत नहीं लेकिन राजनीति के जानकार यह जरूर मानकर चल रहे हैं कि योगेश्वरदत को उनकी लोकप्रियता और उनके कद के अनुरूप पद पर समायोजित करने का सरकार का फैसला शुद्ध तौर पर राजनीतिक कहा जाएगा ।इससे भी खिलाड़ी प्रेरित होंगे और प्रभावित भी। इन्हीं लोगों का यह तर्क भी है कि मुख्यमंत्री के कई और सहयोगी जैसे पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भाजपा सुभाष बराला पूर्व मंत्री मनीष ग्रोवर पूर्व मंत्री कृष्ण बेदी कृष्ण पवार आदि भी चुनाव नहीं जीत पाए थे। योगेश्वर दत्त के समायोजन से रोहतक सोनीपत झज्जर मतलब पुराने रोहतक जिले का प्रतिनिधित्व तो होगा ही, साथ में खिलाड़ियों और ब्राह्मणों को उचित प्रतिनिधित्व देने की बात भी कही जा सकेगी। अब देखना यह है कि निकट भविष्य में जब सरकार लाभ के पदों पर नियुक्तियां करने की पहल करेगी तो वह किस दृष्टिकोण का परिचय देने वाली है। Post navigation रोजगार अधिनियम, 2020 को लागू कर दिया गया , जो 15 जनवरी, 2022 से प्रभावी माना जाएगा : मुख्यमंत्री हज-2022 के लिए आवेदन आमंत्रित, कोरोना वैक्सीन दोनों डोज अनिवार्य