अब आपका संप्रदाय भी पूछ सकती है सरकार

अशोक कुमार कौशिक 

भारत में जनगणना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो हर 10 साल में होती है। यह प्रक्रिया न केवल देश की जनसंख्या के आंकड़े प्रदान करती है, बल्कि विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक निर्णयों के लिए भी आधार तैयार करती है। अब इस प्रक्रिया में एक बड़ा बदलाव होने जा रहा है। 

सूत्रों के मुताबिक भारत में जनगणना अगले साल यानी 2025 में शुरू होगी। जनगणना एक साल यानी 2026 तक चलेगी। इसके बाद जनगणना अब देश में हर 10 साल में होगी और अगली जनगणना अब अगली बार 2035 में होगी। कोविड की वजह से इसका चक्र गड़बड़ हो गया था। पहले हर दशक पर जनगणना होती आई है। इससे पहले 1991, 2001, 2011 में हुई थी और इस तरह से इसे साल 2021 में होने वाली थी। 

अब, नई समय-सारणी के अनुसार, लोगों को हर दशक के पहले वर्ष में जनगणना नहीं करानी पड़ेगी। पिछले समय में, जनगणना दशक की शुरुआत में होती थी, जैसे 1991, 2001, और 2011 में। नए चक्र के अनुसार, अब यह अगले वर्ष 2025 से शुरू होकर 2035 में होगी। ऐसे में सवाल है कि कैसे देश की आबादी को गिना जाएगा, जनगणना की पूरी प्रक्रिया कैसे पूरी होगी और भारत में जनगणना की शुरुआत कब हुई?

भारत में पहली जनगणना 1872 में तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड मेयो के शासन काल में हुई थी। देश पहली संपूर्ण जनगणना 1881 में तत्कालीन आयुक्त डब्ल्यू सी प्लोडेन ने कराई। इसके बाद से हर 10 साल में जनगणना होने लगी। आजादी से पहले साल 1881, 1891, 1901, 1911, 1921, 1931 और 1941 में जनगणना हुई। वहीं आजादी के बाद पहली जनगणना 1951 में हुई. इसके बाद 1961, 1971, 1991, 2001 और 2011 यह प्रक्रिया अपनाई गई।

देश में कैसे होती है जनगणना?

जनगणना की प्रक्रिया के लिए सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है। जनगणना करने वाले कर्मचारी को एन्यूमेरेटर कहते हैं। ये घर-घर जाते हैं और जरूरी जानकारी जुटाते हैं। इन्हें पास पहचान पत्र होता है, किसी भी तरह की संशय की स्थिति में इनसे आधिकारिक पहचान पत्र दिखाने के लिए कह सकते हैं।

भारत में जनगणना की आधिकारिक वेबसाइट कहती है जनगणना दो हिस्सों में होती है। पहला है हाउसिंग और दूसरा है हाउसिंग सेंसस। हाउसिंग से जुड़े सवालों में घर का इस्तेमाल, पेयजल, शौचालय, बिजली, सम्पत्ति और सम्पत्ति के कब्जे से प्रश्न पूछे जाते हैं।

दूसरा फॉर्म राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर से जुड़ा होता है। इसमें घर के लोगों के बारे में कई सवाल पूछे जाते हैं। जैसे- नाम, लिंग, जन्म की तारीख, वैवाहिक स्थिति, पिता का नाम, मां का नाम, जीवनसाथी का नाम, वर्तमान पता, अस्थायी पता, व्यवसाय और परिवार के मुखिया से क्या सम्बंध है। ऐसे करीब 29 सवाल पूछे जाते हैं।

2001 के मुकाबले 2011 में कई सवाल अतिरिक्त पूछे गए। जैसे- इंसान के घर से उसका ऑफिस कितनी दूरी पर है। यानी उसे नौकरी के लिए वर्कप्लेस तक जाने के लिए घर से कितनी दूरी तय करनी पड़ती है। इसके अलावा 2001 में शरणार्थियों से उनके नाम, जिला, राज्य और देश के बारे में पूछा गया, लेकिन 2011 की जनगणना में उनके गांव और नाम भी शामिल किया गया।

इसके अलावा सवालों के कॉलम में जेंडर के लिए अन्य के नाम से अलग से कोड दिया गया है। इसके अलावा घर में कम्प्यूटर/लैपटॉप, इंटरनेट है या नहीं, यह भी बताना होगा। घर में शौचालय है या नहीं, एलपीजी का कनेक्शन है या नहीं, यह भी बताना होगा।

हर दशक बढ़ती रही जनगणना के सवालों की संख्या

जनगणना के सवालों पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि हर दशक सवालों की संख्या में इजाफा हुआ है। आजादी के बाद पहली जनगणना में लोगों से मात्र 14 सवाल पूछे गए थे। इसके बाद सवालों की संख्या बढ़ती गई। 2001 में 23 सवाल पूछे गए और 2011 में इनकी संख्या बढ़कर 29 पहुंच गई।

2001 के मुकाबले 2011 में कई सवाल अतिरिक्त पूछे गए। जैसे- इंसान के घर से उसका ऑफिस कितनी दूरी पर है। यानी उसे नौकरी के लिए जाने पर घर से कितनी दूरी तय करनी पड़ती है। इसके अलावा 2001 में शरणार्थियों से उनके नाम, जिला, राज्य और देश के बारे में पूछा गया, लेकिन 2011 की जनगणना में उनके गांव और नाम भी शामिल किया गया।

इस बार बढ़ सकते हैं सवाल

चर्चा है कि इस बार जनगणना में लोगों से पूछा जा सकता है कि वो किस सम्प्रदाय को मानते हैं। अगर ऐसा होता है तो उम्मीद है कि सवालों की संख्या और भी बढ़ सकती है। इसके अलावा कुछ नए सवाल भी शामिल किए जा सकते हैं। दावा किया जाता है कि जनगणना के दौरान जो जानकारियां जुटाई जाती हैं वो किसी भी निजी एजेंसी के साथ सांझा नहीं की जातीं। कर्मचारियों द्वारा घर-घर से डाटा जुटाने के बाद इसे फिल्टर किया जाता है और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर को अंतिम रूप दिया जाता है। इस डेटाबेस का उपयोग केवल सरकार ही कर सकती है।

पहली बार होगा ऐसा

देश में पहली बार जनगणना के आंकड़े डिजिटल तरीके से जुटाए जाएंगे। सरकार ने इसके लिए विशेष पोर्टल तैयार कराया है। इस पोर्टल में जातिवार जनगणना के आंकड़ों के लिए भी प्रावधान किए जा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार ने जनगणना के साथ जातिवार जनगणना कराने को लेकर फिलहाल औपचारिक फैसला नहीं किया है। लेकिन पूरे आसार हैं कि भविष्य के मद्देनजर अभी जनगणना को बहुआयामी, भविष्योन्मुखी और सर्व समावेशी बनाया जाए।

इससे चुनावी प्रक्रिया में न्याय और समानता सुनिश्चित होती है। जातिगत जनगणना की मांग कई विपक्षी दलों की तरफ से जातिगत जनगणना की मांग उठाई जा रही है। इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक चर्चाएँ तेज हो गई हैं, लेकिन सरकार ने अभी तक कोई औपचारिक निर्णय नहीं लिया है। जातिगत जनगणना का मतलब है कि जनसंख्या को जाति के आधार पर विभाजित किया जाए, जिससे यह पता चले कि विभिन्न जातियों का क्या अनुपात है।

अब आपसे संप्रदाय भी पूछ सकती है सरकार

मिली जानकारी के मुताबिक जनगणना की साइकल कोविड महामारी के कारण गड़बड़ हो गई। महामारी के कारण जनगणना टालनी पड़ी लेकिन इसके बाद अब जनगणना का चक्र भी बदल जाएगा। अगली जनगणना 2025 में होगी और उसके बाद 2035 और फिर 2045, 2055 में होगी। बता दें कि अब तक जनगणना में धर्म और वर्ग पूछा जाता रहा है। साथ ही सामान्य, अनुसूचित जाति और जनजाति की गणना होती है। नए सवालों का समावेश इस बार, जनगणना में लोगों से यह भी पूछा जा सकता है कि वे किस संप्रदाय के अनुयायी हैं। उदाहरण के लिए, कर्नाटक में सामान्य वर्ग में आने वाले लिंगायत स्वयं को एक अलग संप्रदाय मानते हैं। इसी तरह अनुसूचित जाति में वाल्मीकि, रविदासी, जैसे अलग-अलग संप्रदाय हैं। यानी धर्म, वर्ग के साथ संप्रदाय के आधार पर भी जनगणना की मांग पर सरकार विचार कर रही है। इससे आरक्षण और अन्य सुविधाओं के लिए विशेष योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी। 

इससे यह स्पष्ट होगा कि किस धर्म और वर्ग के लोग किस संप्रदाय से संबंधित हैं। इस तरह के प्रश्नों का समावेश न केवल जनगणना की प्रक्रिया को विस्तारित करेगा, बल्कि यह सामाजिक ढांचे को भी समझने में मदद करेगा। सरकार का निर्णय केंद्र सरकार ने अभी तक जातिगत जनगणना कराने के बारे में कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है। लेकिन मोदी सरकार यह समझती है कि यदि जातिगत जनगणना कराई जाती है, तो इससे सरकार को आरक्षण और अन्य सुविधाओं के लिए विशेष योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी।

परिसीमन की प्रक्रिया जनगणना के बाद 

लोकसभा सीटों का परिसीमन भी होगा। परिसीमन का अर्थ है कि जनसंख्या के आधार पर चुनावी क्षेत्र को पुनर्निर्धारित करना। यह प्रक्रिया 2028 तक पूरी होने की संभावना है। परिसीमन का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर क्षेत्र को उसकी जनसंख्या के अनुसार सही प्रतिनिधित्व मिले।

इसके अलावा, सरकार चाहती है कि एक तरफ तो इस मुद्दे पर एनडीए में कोई मतभेद न हो, और दूसरी तरफ सभी धर्मों की आबादी में जाति व्यवस्था के विभिन्न पहलुओं को समझा जा सके। जनगणना का महत्व जनगणना का आंकड़ा सरकार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह न केवल जनसंख्या का सही आंकड़ा प्रस्तुत करता है, बल्कि यह विभिन्न नीतियों और योजनाओं के निर्माण में भी मदद करता है। इससे यह समझा जा सकता है कि किस क्षेत्र में विकास की आवश्यकता है और कहाँ संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार, जनगणना की प्रक्रिया में बदलाव से न केवल जनसंख्या का सही आंकड़ा प्राप्त होगा, बल्कि यह विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को भी प्रभावित करेगा। लोगों के लिए यह जानना जरूरी है कि उनकी जनगणना में कौन से नए सवाल शामिल होंगे और इससे उनकी सामाजिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा। जनगणना की प्रक्रिया में इस प्रकार के बदलाव, भारतीय समाज के लिए नए दृष्टिकोण और समझ के दरवाजे खोल सकते हैं।

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