किरण चौधरी के विधायक पद से त्यागपत्र दिए बगैर भाजपा में  शामिल होने से सरकार को राहत  

विश्वास-मत या अविश्वास प्रस्ताव दौरान मत बराबर होने पर भी स्पीकर का निर्णायक वोट भाजपा का    

सदन में हुए फ्लोर टेस्ट  के नतीजे में  सरकार के अल्पमत में साबित हुए  बगैर न राज्यपाल, न राष्ट्रपति और न  ही सुप्रीम कोर्ट किसी निर्वाचित सरकार को समय पूर्व बर्खास्त कर विधानसभा को भंग करने का आदेश नहीं दे सकते.  

चंडीगढ़ –हरियाणा में नायब  सिंह सैनी के नेतृत्व में गठित  भाजपा सरकार के  100 दिन बीते कल  20 जून को पूरे हो गये हैं. यह बात और है‌ कि गत 12 मार्च को प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष नायब सैनी, जो उस समय कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से पार्टी  सांसद भी थे, के  हरियाणा के  मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण  लेने  के 4 दिनों  बाद ही  16 मार्च से भारतीय चुनाव आयोग द्वारा  18 वीं लोकसभा के आम चुनाव का  विस्तृत कार्यक्रम  घोषित कर दिया गया जिसके फलस्वरूप  तत्काल रूप से आदर्श आचार संहिता लागू‌ हो गयी  गई  जो‌ अढ़ाई माह से ऊपर समय  तक चली एवं इसी माह 5 जून को चुनावी प्रक्रिया सम्पन्न होने क बाद ही उसे हटाया गया है.

 हालांकि आचार संहिता के  दौरान  नायब सैनी को  प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर सभी अधिकार प्राप्त थे  परन्तु जहाँ  तक प्रदेश वासियों अथवा समाज के किसी वर्ग विशेष  के लिए कोई नई योजना या परियोजना, स्कीम, लाभ या रियायत आदि देने का विषय रहा, तो आचार संहिता के चलते प्रदेश सरकार   द्वारा ऐसा नहीं किया जा सका. संभवत: इसलिए 20 जून को मौजूदा नायब सैनी सरकार के 100 दिन पूरे होने पर प्रदेश सरकार के सूचना, लोक संपर्क विभाग द्वारा इस विषय पर विशेष सरकारी विज्ञापन आदि जारी नहीं किये गये.   

बहरहाल, इस सबके बीच पंजाब एवं‌ हरियाणा हाईकोर्ट में एडवोकेट और राजनीतिक-कानूनी विश्लेषक‌ हेमंत कुमार ( 9416887788) का कहना है‌ कि नायब सैनी सरकार जब 12 मार्च को सत्ता में आई थी, तब उसके पास 90 सदस्यी हरियाणा विधानसभा में 48 विधायकों का समर्थन हासिल था.  13 मार्च को तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर   द्वारा करनाल वि.स. सीट के तत्कालीन  विधायक पद  त्यागपत्र देने  कारण प्रदेश सरकार की  89 सदस्यीय सदन में समर्थन संख्या  एक घटकर  47 हो गई.

उसके बाद 24 मार्च को नायब सैनी  सरकार में कैबिनेट मंत्री रणजीत चौटाला, जो सिरसा की रानियाँ वि.स. सीट से निर्दलीय विधायक थे के विधायक पद से  इस्तीफ़ा देने, जिसे हालांकि स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता द्वारा 30 अप्रैल को  परन्तु पिछली तिथि 24 मार्च से ही स्वीकार किया गया, भाजपा  सरकार की  88 सदन में समर्थन संख्या एक और घटकर 46 हो गयी. उसके बाद  मई माह के आरम्भ में प्रदेश सरकार को समर्थन दे रहे तीन निर्दलीय विधायकों – सोमवीर सांगवान (दादरी), रणधीर गोलन (पूंडरी) और धर्मपाल गोंदर (नीलोखेड़ी)  के नायब सैनी सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा से  और 25 मई को सरकार को समर्थन कर थे एक  अन्य निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद (बादशाहपुर) के निधन से 87 सदस्यीय सदन में भाजपा सरकार की समर्थन संख्या घटकर 42 हो गयी जिस कारण विपक्षी कांग्रेस एवं अन्य द्वारा सरकार के अल्पमत में होने कारण उसे तत्काल बर्खास्त करने की राज्यपाल से मांग की गयी.

 हालांकि 4 जून को मुख्यमंत्री नायब सैनी के करनाल वि.स. चुनाव जीतने से 88 सदस्यीय सदन में सरकार की समर्थन संख्या बढ़कर 43 हो गयी. गत 15 जून को   कांग्रेस विधायक वरुण चौधरी  के अम्बाला लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित होने फलस्वरूप  उनके मुलाना वि.स. सीट के त्यागपत्र से एवं  19 जून को कांग्रेस विधायक किरण चौधरी के विधानसभा सदस्यता छोड़े बगैर भाजपा में शामिल होने से आज की तारीख में 87 सदस्ययी हरियाणा विधानसभा में नायब सैनी सरकार के पक्ष में किरण चौधरी को जोड़कर 44 (  स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता को मिलाकर) का आंकड़ा बनता है.     

 इसी बीच  हेमंत ने   रोचक  परन्तु महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया कि मौजूदा  हरियाणा विधानसभा में बेशक भाजपा के स्वयं के 41 सदस्य (विधायक ) हैं परन्तु  संवैधानिक रूप से   प्राथमिक तौर पर  40 भाजपा  विधायक ही नायब सैनी सरकार के पक्ष में (अगर विश्वास प्रस्ताव  हो ) और विरोध में ( अगर अविश्वास प्रस्ताव हो ) ही वोट कर सकते हैं क्योंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 189 (1) के अनुसार विधानसभा स्पीकर केवल  सदन में किसी प्रस्ताव पर मत बराबर होने की परिस्थिति में ही  अपना निर्णायक मत (कास्टिंग वोट ) दे सकता है.  

 हेमंत ने यह भी बताया कि वर्तमान 87 सदस्ययी हरियाणा विधानसभा में मौजूदा  100 दिन पुरानी नायब सैनी सरकार बहुमत या अल्पमत में है, यह केवल  विधानसभा सदन में सरकार द्वारा फ्लोर टेस्ट पश्चात अर्थात विश्वासमत‌ हासिल करने या न कर पाने के आधार पर ही साबित हो सकता है, राजभवन या किसी सार्वजनिक स्थल पर विपक्षी दलों द्वारा  अपने  विधायकों की परेड कराकर नहीं या उनके हस्ताक्षर करा ज्ञापन सौंपने से नहीं, जैसे कि गत तीन दशकों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनेक निर्णयों में स्पष्ट किया गया है.  विपक्षी कांग्रेस का यह तर्क  कि विश्वास मत कराने से  सत्तापक्ष द्वारा होर्स- ट्रेडिंग की जा सकती है, यह राज्यपाल द्वारा  फ्लोर टेस्ट का आदेश देने से रोकने का  कोई  आधार नहीं है. सदन में हुए फ्लोर टेस्ट  के नतीजे में  सरकार के अल्पमत में साबित हुए  बगैर न राज्यपाल, न राष्ट्रपति और न  ही सुप्रीम कोर्ट किसी निर्वाचित सरकार को समय पूर्व बर्खास्त कर विधानसभा को भंग करने का आदेश नहीं दे सकते.  

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