मौजूदा सांसद बिना त्यागपत्र दिए बन सकता है प्रदेश का मुख्यमंत्री — एडवोकेट हेमंत 

चंडीगढ़ –  देश की संसद के मौजूदा सदस्य अर्थात सांसद को प्रदेश के मुख्यमंत्री (सी.एम.) के तौर पर नियुक्त किया जा सकता है और ऐसी नियुक्ति में किसी भी प्रकार का संवैधानिक या कानूनी प्रतिबंध (निषेध) नहीं है, यह कहना है पंजाब और हरियाणा एडवोकेट हेमंत कुमार का. गत मंगलवार 12 मार्च को कुरूक्षेत्र लोकसभा सीट से मौजूदा भाजपा सांसद नायब सिंह सैनी को  मनोहर लाल खट्टर के स्थान पर हरियाणा का नया मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया.

बीते दिनों  हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में नायब सैनी की नियुक्ति को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) में इस आधार पर चुनौती दी गई है कि चूंकि वह सांसद होने के फलस्वरूप भारत सरकार के तहत लाभ के पद के धारक हैं एवं  हरियाणा  विधानसभा का सदस्य हुए बिना  राज्य के मुख्यमंत्री का पद लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के साथ-साथ भारत के संविधान के प्रावधानों के तहत सांसद के पद से अयोग्यता को आमंत्रित करता है.

हालाँकि एडवोकेट हेमंत का स्पष्ट कानूनी मत‌ है कि सबसे पहले तो एक मौजूदा सांसद को  प्रदेश का मुख्यमंत्री नियुक्त किए जाने पर कोई कानूनी रोक नहीं है क्योंकि भारत के संविधान के अनुसार, लाभ के पद की अवधारणा संसद के किसी सदन या राज्य विधानमंडल का सदस्य चुने जाने और ऐसा सदस्य बने रहने के मामले में ही लागू होती है. यह अवधारणा एक मौजूदा सांसद की राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्ति के मामले में लागू नहीं होता है. इसके अलावा, यहां तक कि प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद भी लाभ का पद नहीं है क्योंकि इसे भारतीय संसद (अयोग्यता निवारण) अधिनियम, 1959 के तहत बाहर रखा गया है। प्रासंगिक है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 102 के अनुसार, एक व्यक्ति को संसद के किसी सदन का सदस्य चुने जाने और बने रहने के लिए अयोग्य ठहराया जाएगा यदि वह भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के तहत लाभ का कोई पद धारण करता है हालांकि संसद द्वारा‌ बनाए कानून द्वारा अपवाद के तौर पर घोषित किए पद के धारक को इस आधार पर अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है. इसलिए किसी राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त होने के बाद भी मौजूदा सांसद के अयोग्य होने का कोई सवाल ही नहीं  उठता है.

हेमंत ने आगे बताया कि चूंकि हरियाणा के नए सीएम नायब सिंह सैनी फिलहाल मौजूदा 14 वीं हरियाणा विधानसभा के सदस्य नहीं हैं, इसलिए  भारत देश के संविधान के अनुच्छेद 164(4) के अनुसार गैर-विधायक के तौर पर में वह  पदभार संभालने से केवल छह महीने यानी 11 सितंबर 2024 तक ही मुख्यमंत्री पद पर बने रह सकते हैं. हालांकि यदि वह उपरोक्त तिथि से पहले प्रदेश विधानसभा की रिक्त सीट का उपचुनाव जीतकर विधायक बनते हैं, तो पद पर  बने रह सकते हैं.

चूंकि पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने 13 मार्च को करनाल विधानसभा सीट से विधायक के तौर पर त्यागपत्र दे दिया है, इसलिए भारतीय चुनाव आयोग  नए सीएम नायब सैनी को हरियाणा विधानसभा का सदस्य बनने का मौका देने के लिए करनाल विधानसभा सीट पर उपचुनाव करा सकता है. कानूनी तौर पर यदि पूर्व (इस्तीफा देने वाले) विधायक का शेष कार्यकाल एक वर्ष से कम है तो  उपचुनाव नहीं कराया जाता है. चूंकि वर्तमान हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर 2024 तक है, इसलिए पूर्व विधायक और पूर्व सीएम मनोहर लाल का करनाल से विधायक के रूप में शेष कार्यकाल आठ महीने से कम है.

हेमंत ने बताया कि   वर्ष 1986 में भी ऐसा हुआ था जब  हरियाणा में  तत्कालीन मुख्यमंत्री भजन लाल को बदल कर लोकसभा सांसद  बंसी लाल को मुख्यमंत्री बनाया गया था एवं  तत्कालीन  हरियाणा विधानसभा की एक वर्ष से कम अवधि शेष होने बावजूद भिवानी जिले की तोशाम विधानसभा सीट पर उपचुनाव कराया गया था जिसमें बंसी लाल रिकॉर्ड मार्जिन से निर्वाचित होकर विधायक बने थे. उस अल्प-अवधि के लिए कराए गए  उपचुनाव को हालांकि दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गयी परन्तु दोनों शीर्ष अदालतों ने उसमें हस्तक्षेप नहीं किया था. इसी प्रकार वर्ष 1999 में ओडिशा के  तत्कालीन मुख्यमंत्री और लोकसभा सांसद गिरिधर गमांग के लिए भी अल्प-अवधि के लिए  विधानसभा उपचुनाव कराया गया था जिसे जीतकर वह विधायक बने थे.

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