सांसद बृजेंद्र सिंह ने फेंका ‘कमल’, थामा कांग्रेस का ‘हाथ’ हिसार में बीजेपी को झटका: बृजेंद्र सिंह के इस्तीफे से दुष्यंत चौटाला और कुलदीप बिश्नोई के समर्थकों में उत्साह अशोक कुमार कौशिक लोकसभा चुनावों की घोषणा और प्रदेश में प्रत्याशियों की घोषणा से पहले हरियाणा की राजनीति ने बड़ी करवट ली है। एक बड़े राजनीतिक घटनाक्रम में हिसार से भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह ने खुद को भाजपा से अलग कर लिया। इतना ही नहीं, उन्होंने नई दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिका अर्जुन खड़गे की मौजूदगी में कांग्रेस की सदस्यता भी ग्रहण कर ली। हिसार से सांसद बृजेंद्र सिंह के बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने से जननायक जनता पार्टी (जजपा) के कार्यकर्ताओं में उत्साह होना लाजमी है। दरअसल, इस सीट पर भजनलाल और चौधरी वीरेंद्र सिंह के अलावा चौटाला परिवार का भी दबदबा रहा है। यही कारण है कि इनेलो से टूटकर बनी जननायक जनता पार्टी लोकसभा चुनाव 2024 में हिसार की सीट मांग रही है। दुष्यंत चौटाला ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर हमारी मांग स्वीकार नहीं की जाती है, तो हम सभी दस लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं। यही नहीं, भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई ने भी हिसार लोकसभा सीट पर पहले से दावेदारी ठोंक रखी है। ऐसे में बीजेपी के लिए हिसार लोकसभा सीट पर प्रत्याशी का चयन करने के लिए खासी जद्दोजहद करनी पड़ सकती है। आइये जानने का प्रयास करते हैं कि बृजेंद्र सिंह और उनके पिता चौधरी वीरेंद्र सिंह ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी को यह झटका किस वजह से दिया है। उनके पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र सिंह तथा उनकी माता व पूर्व विधायक प्रेमलता अभी भी भाजपा में बने हुए हैं। बीरेंद्र सिंह ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। माना जा रहा है कि वे भी अगले कुछ दिनों में भाजपा को अलविदा बोलकर कांग्रेस का ‘हाथ’ थाम सकते हैं। यानी बीरेंद्र सिंह की घर वापसी की संभावना अब काफी बढ़ गई है। लगभग दस साल पहले बीरेंद्र सिंह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। हरियाणा में बीरेंद्र सिंह का पहला ऐसा परिवार है, जिसके तीन सदस्यों को भाजपा ने टिकट दिया। बीरेंद्र सिंह के भाजपा में आने के बाद उन्हें राज्यसभा भेजा गया और केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनाया गया। इसके बाद 2014 के विधानसभा चुनावों में उनकी पत्नी प्रेमलता उचाना कलां से भाजपा विधायक रही। परिवारवाद के खिलाफ माने जाने वाली भाजपा में ऐसे कम ही उदारहण हैं, जब परिवार के तीन-तीन सदस्यों को राजनीति में एडजस्ट किया गया हो। 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने बीरेंद्र सिंह के आईएएस बेटे बृजेंद्र सिंह को हिसार से लोकसभा चुनाव लड़वाया और इसी साल अक्तूबर में हुए विधानसभा चुनावों में प्रेमलता को फिर से उचाना कलां से टिकट मिला। 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद और विधानसभा चुनाव होने से पहले एक दौरा ऐसा भी था जब बीरेंद्र सिंह राज्यसभा सदस्य थे, बृजेंद्र सिंह लोकसभा पहुंच चुके थे और प्रेमलता उचाना से विधायक थीं। खुद बीरेंद्र सिंह पिछले लम्बे समय से इस तरह के संकेत दे रहे थे कि वे देर-सवेर भाजपा से नाता तोड़ेंगे। रविवार को सुबह सांसद बृजेंद्र सिंह ने सोशल मीडिया पर की पोस्ट के जरिये यह खुलासा कर दिया कि उन्होंने भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। हालांकि उन्होंने भाजपा में मिले मान-सम्मान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी नेतृत्व का आभार भी जताया है। मल्लिका अर्जुन खड़गे की मौजूदगी में मीडिया से बातचीत में भी उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की। इस दौरान मौजूद रहे वरिष्ठ कांग्रेस नेता अजय माकन ने मीडिया के सवालों के जवाब मंे कहा कि बीरेंद्र सिंह किसी पब्लिक मीटिंग के जरिये कांग्रेस में शामिल होंगे। भाजपा छोड़ने की बताई यह वजह बृजेंद्र सिंह ने भाजपा छोड़ने के पीछे तीन-चार राजनीतिक कारणों को मुख्य कारण बताया है। उनका कहना है कि किसानों के आंदोलन और उनकी मांग के वे शुरू से समर्थन में रहे हैं। इसी तरह से केंद्र सरकार द्वारा सेनाओं के लिए शुरू की गई ‘अग्निपथ’ योजना से वे सहमत नहीं थे। महिला पहलवानों के धरने और उनकी मांगों को लेकर भाजपा की कार्यशैली और स्टैंड से भी बृजेंद्र सिंह सहमत नहीं थे। बृजेंद्र सिंह ने कहा, ये ऐसे मुद्दे हैं, जिनकी वजह से वे भाजपा में असहज महसूस कर रहे थे। कांग्रेस का सियासी दांव, जाटों को साधने भाजपा के दांव की काट राष्ट्रीय लोक दल के नेता जयंत चौधरी को गठबंधन में शामिल कर भाजपा ने जाट बेल्ट में बड़ा सियासी संदेश देने की कोशिश की। मगर अब हरियाणा के बड़े जाट नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह ने बड़ा सियासी दांव चल दिया है। रविवार को चुनाव समिति की बैठक से ठीक पहले उनके बेटे ने भाजपा को अलविदा कह दिया। बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह हिसार से सांसद है और पूर्व आईएएस अधिकारी भी रह चुके हैं। वह कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। लोकसभा चुनाव और हरियाणा विधानसभा से पहले बीरेंद्र सिंह परिवार की भाजपा से दूरी एक बड़ा झटका है। सियासी जानकारों के मुताबिक भाजपा हिसार से बृजेंद्र सिंह का टिकट काट सकती थी। टिकट का एलान होने से पहले ही उन्होंने पार्टी को अलविदा कह दिया। भाजपा-जजपा गठबंधन ने बिगाड़े समीकरण बीरेंद्र सिंह का मुख्य गढ़ उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र है। यहां से उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला विधायक हैं। भाजपा-जजपा का इस समय प्रदेश में गठबंधन हैं। बीरेंद्र सिंह, उनके बेटे सांसद बृजेंद्र सिंह और उनकी पत्नी पूर्व विधायक प्रेमलता बार-बार भाजपा-जजपा गठबंधन तोड़ने पर जोर दे चुके हैं, क्योंकि अगर गठबंधन में विधानसभा चुनाव हुए तो उचाना कलां से उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ही चुनाव लड़ेंगे और प्रेमलता को भाजपा का टिकट नहीं मिल सकता। अपनी पत्नी को भाजपा का टिकट दिलाने के लिए बीरेंद्र सिंह भाजपा पर दबाव बना रहे थे। इस्तीफे की तीसरी वजह किसान आंदोलन बृजेंद्र सिंह के इस्तीफे की तीसरी वजह किसान आंदोलन बताया जा रहा है। बृजेंद्र सिंह ने कांग्रेस जॉइन करने के बाद इस्तीफे की जो वजह बताई हैं, उसमें किसान आंदोलन भी शामिल है। उन्होंने कहा कि किसानों के मुद्दों समेत अन्य राजनीतिक कारणों के चलते इस्तीफा दे रहा हूं। बता दें कि इस किसान आंदोलन में सबसे ज्यादा बवाल हिसार में ही हुआ है। यहां सबसे पहले खाप पंचायत का आयोजन किया गया था, जिसमें प्रदेश की सभी खाप पंचायतों से किसान आंदोलन में शामिल होने का आह्वान किया गया था। यही नहीं, हिसार से किसानों ने शंभू बॉर्डर चूक करना शुरू कर दिया था, लेकिन पुलिस ने उन्हें जबरन हिरासत में ले लिया। इसके बाद खाप पंचायत ने ऐलान किया था कि बीजेपी नेताओं को किसी गांव में नहीं घुसने देंगे। यही बड़ा कारण रहा कि बृजेंद्र ने इस्तीफा देने की वजह में किसान आंदोलन को भी शामिल कर लिया ताकि आने वाले लोकसभा चुनाव में उन्हें खाप पंचायतों का समर्थन मिल सके। बीजेपी की क्या रहेगी रणनीति कांग्रेस ने 20 साल पहले 2004 के लोकसभा चुनाव में हिसार सीट जीती थी। उसके बाद से हार का सामना करना पड़ा है। अब बृजेंद्र सिंह के कांग्रेस में शामिल होने से उम्मीद जगी है कि हिसार लोकसभा सीट जीती जा सकती है। अब सवाल उठता है कि इस जाटलैंड पर बीजेपी किसे चुनावी मैदान में उतारेगी। बता दें कि दुष्यंत चौटाला पहले भी इस सीट पर जीत हासिल कर चुके हैं। उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में कुलदीप बिश्नोई को 31,647 वोटों से हराया था। वहीं, कुलदीप बिश्नोई ने 2011 में अपने पिता भजनलाल के निधन के बाद हिसार लोकसभा सीट से जीत हासिल की थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई जीत नहीं सके और तीसरे स्थान पर रहे। वहीं दुष्यंत चौटाला दूसरे स्थान पर थे। यही कारण है कि कुलदीप बिश्नोई राजस्थान विधानसभा चुनाव के समय से हिसार लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जता रहे हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी हरियाणा की इस हॉट लोकसभा सीट से किसे चुनाव मैदान में उतारेगी। Post navigation इस सरकार से वोट की चोट से पीछा छुड़ाने का समय आ गया है – भूपेंद्र सिंह हुड्डा औद्योगिक मॉडल टाउनशिप खरखौदा में बनेगा 57 एमएलडी क्षमता का जल उपचार संयंत्र