संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्र में निर्माण पर रोक, सरकार और पर्यावरण मंत्रालय से मांगा जवाब
नई दिल्ली / गुरुग्राम, 10 अक्टूबर 2025 : सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को बड़ा झटका देते हुए अरावली पर्वतमाला में प्रस्तावित “जंगल सफारी परियोजना” पर अस्थायी रोक लगा दी है। न्यायालय ने कहा कि यह परियोजना अत्यंत संवेदनशील पर्यावरणीय क्षेत्र में है, और जब तक विस्तृत अध्ययन और कानूनी अनुमति की प्रक्रिया स्पष्ट नहीं होती, तब तक कोई भी नया निर्माण या विकास कार्य नहीं किया जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनीष पिटाले की खंडपीठ ने यह आदेश सुनाते हुए कहा कि अरावली क्षेत्र दिल्ली-एनसीआर के पर्यावरणीय संतुलन के लिए जीवनरेखा है, इसलिए किसी भी विकास परियोजना को मंजूरी देने से पहले पारिस्थितिकी प्रभाव का गहन परीक्षण जरूरी है।
क्या है जंगल सफारी परियोजना
हरियाणा सरकार ने गुरुग्राम और नूंह जिलों में फैले लगभग 10,000 एकड़ क्षेत्र में ‘अरावली जंगल सफारी’ बनाने की योजना बनाई थी। इस परियोजना के तहत विभिन्न प्रजातियों के जानवरों, पक्षियों और सरीसृपों के लिए अलग-अलग जोन बनाए जाने थे। सरकार का दावा था कि यह परियोजना “विश्व की सबसे बड़ी जंगल सफारी” होगी, जो इको-टूरिज़्म को बढ़ावा देगी और रोजगार के अवसर पैदा करेगी।
हालांकि, पर्यावरणविदों का कहना है कि यह योजना “संरक्षण के नाम पर व्यावसायिक दोहन” है, जिससे अरावली की प्राकृतिक बनावट, जैव विविधता और भूजल संरचना को गहरा नुकसान होगा।
याचिकाकर्ताओं के तर्क
यह याचिका पाँच सेवानिवृत्त भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारियों और पर्यावरण संगठन ‘People for Aravallis’ ने दायर की थी। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह क्षेत्र पहले से ही 1992 के अरावली नोटिफिकेशन और वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत संरक्षित है।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि:
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प्रस्तावित सफारी वन्यजीव गलियारों (wildlife corridors) को बाधित करेगी।
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यह परियोजना “जैव विविधता संरक्षण” के बजाय “वाणिज्यिक पर्यटन” को प्राथमिकता देती है।
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किसी भी निर्माण से पहले पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) और केंद्र की स्वीकृति अनिवार्य थी, जो अभी तक नहीं मिली है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस परियोजना पर इंटरिम स्टे (अस्थायी रोक) लगाते हुए केंद्र सरकार और हरियाणा सरकार को दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
न्यायालय ने कहा कि “अरावली की पहाड़ियों में प्रस्तावित किसी भी निर्माण या परियोजना से पहले यह साबित किया जाना चाहिए कि उससे पर्यावरणीय क्षति नहीं होगी।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक अगली सुनवाई नहीं होती, तब तक जंगल सफारी से संबंधित किसी प्रकार की भूमि विकास, सड़क निर्माण या निजी ठेका गतिविधि नहीं की जाएगी।
अगली सुनवाई की तारीख 15 अक्टूबर 2025 तय की गई है।
पर्यावरणविदों की प्रतिक्रिया
पर्यावरण विशेषज्ञों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत किया है।
डॉ. के. सी. पांडे, हरियाणा के पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) ने कहा, “यह निर्णय अरावली के लिए राहत की सांस है। यदि सफारी जैसी परियोजनाएँ शुरू होती हैं, तो वहां की भूगर्भीय स्थिरता और जैव विविधता दोनों खतरे में पड़ सकते हैं।”
People for Aravallis की संस्थापक सदस्य सुमन नारंग ने कहा, “सरकार संरक्षण के नाम पर विनाश का रास्ता खोल रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने वनों की रक्षा में ऐतिहासिक कदम उठाया है।”
वहीं, WWF-India के एक वरिष्ठ विशेषज्ञ ने कहा कि अरावली दिल्ली-एनसीआर की ‘ग्रीन लंग्स’ हैं। यह क्षेत्र न केवल वन्यजीवों का घर है, बल्कि NCR के भूजल पुनर्भरण (groundwater recharge) के लिए भी बेहद जरूरी है।
सरकार का पक्ष
हरियाणा के वन मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हुए कहा कि सरकार पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
उन्होंने दावा किया कि “जंगल सफारी” पूरी तरह इको-टूरिज़्म आधारित परियोजना है और इसके लिए प्रारंभिक पर्यावरण अध्ययन (EIA) कराया गया है।
मंत्री ने कहा, “हम अदालत में सभी तथ्य प्रस्तुत करेंगे और यह साबित करेंगे कि यह योजना प्रकृति के हित में है।”
आगे की राह
अब अदालत यह तय करेगी कि परियोजना को पूरी तरह रद्द किया जाए या विशेष पर्यावरणीय शर्तों के साथ इसे आगे बढ़ाने की अनुमति दी जाए।
यह मामला न केवल हरियाणा बल्कि पूरे देश में “विकास बनाम पर्यावरण संरक्षण” की बहस का प्रतीक बन गया है।








