दुनिया को बदलने के लिए सही साधनों के साथ बालिकाओं को सुरक्षित, शिक्षित, सशक्त और स्वस्थ जीवन शैली सुनिश्चित करना समय की मांग
-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया-वैश्विक स्तरपर भारत में आदि-अनादि काल से महिलाओं को उच्च सम्मान प्राप्त रहा है। उन्हें देवियों का अवतार माना गया और समाज में “नारी” को सृजन शक्ति के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित किया गया। किंतु समय के साथ परिस्थितियां बदलीं, और सामाजिक रूढ़िवादिता ने बालिकाओं की स्थिति को बुरी तरह प्रभावित किया। बाल विवाह, सती प्रथा, दहेज प्रथा, और कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाओं ने समाज में गहरी जड़ें जमा लीं, जिससे लड़कियों को शिक्षा, स्वास्थ्य, और समान अधिकारों से वंचित रहना पड़ा।मैं, एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया (महाराष्ट्र) मानता हूं कि आधुनिक युग में अब समय आ गया है जब समाज को इन जंजीरों से मुक्त होकर बालिकाओं को उनके संपूर्ण अधिकार और अवसर देने होंगे। सरकार, समाज और मीडिया को मिलकर ऐसा माहौल तैयार करना होगा जहां बालिकाएं सुरक्षित हों, शिक्षित हों, सशक्त हों और उन्हें स्वस्थ जीवनशैली का अधिकार प्राप्त हो।
बालिकाओं की शक्ति: राष्ट्र निर्माण की आधारशिला
बालिकाएं आज सिर्फ परिवार की नहीं बल्कि समाज और राष्ट्र की रीढ़ हैं। उनमें एक साथ कार्यकर्ता, उद्यमी, संरक्षक, माँ, घर की मुखिया और राजनीतिक नेता बनने की क्षमता है। संयुक्त राष्ट्र भी यह मानता है कि किशोरियों की शक्ति में निवेश करना एक न्यायपूर्ण, समान और समृद्ध भविष्य के निर्माण का सबसे सशक्त माध्यम है। यह न केवल उनके अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि जलवायु परिवर्तन, राजनीतिक संघर्ष, आर्थिक विकास और वैश्विक स्थिरता जैसे क्षेत्रों में उनकी सहभागिता सुनिश्चित करता है।
भारत में बेटियों की स्थिति और सामाजिक जिम्मेदारी
भारतीय समाज में बेटियों के प्रति सोच धीरे-धीरे बदल रही है, परंतु अभी भी चुनौतियां बनी हुई हैं। निर्भया जैसी घटनाएं आज भी समाज के असंवेदनशील हिस्से को उजागर करती हैं। भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा, यौन शोषण और बलात्कार जैसे अपराध नारी सम्मान पर कलंक हैं।
हर नागरिक का यह नैतिक दायित्व है कि वह अपनी बेटियों को संस्कार, शिक्षा और आत्मविश्वास प्रदान करे। बालिकाओं को महान महिलाओं की प्रेरणादायी कहानियों से परिचित कराना, उन्हें आत्मरक्षा के गुर सिखाना और समाज में सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए प्रेरित करना अभिभावकों की पहली जिम्मेदारी है।
शिक्षा: सशक्तिकरण की पहली सीढ़ी
लड़कियों की शिक्षा किसी समाज के विकास की आधारशिला है। शिक्षित बालिका न केवल अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होती है, बल्कि पूरे परिवार और समाज को प्रगतिशील बनाती है। शिक्षा के माध्यम से उनमें आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता विकसित होती है, जो उन्हें गरीबी और शोषण की बेड़ियों से मुक्त करती है।
सरकारी योजनाएँ और प्रयास
भारत सरकार ने बालिकाओं के विकास और सशक्तिकरण के लिए कई योजनाएं लागू की हैं।
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना (2015) इसका प्रमुख उदाहरण है, जिसका उद्देश्य बालिकाओं की शिक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करना है। यह योजना महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त प्रयास से चल रही है।
इसके साथ ही सतत विकास लक्ष्य (SDG-2030) में भी लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को प्रमुख स्थान दिया गया है। इन लक्ष्यों का उद्देश्य एक ऐसा समाज बनाना है जहाँ कोई भी व्यक्ति पीछे न छूटे और महिलाएं हर क्षेत्र में समान अवसर प्राप्त करें।
बदलता सामाजिक दृष्टिकोण और ग्रामीण परिवर्तन
वक़्त के साथ समाज की सोच और प्राथमिकताएं बदल रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी अब परिवार अपनी बेटियों को शिक्षा, खेल और व्यवसाय के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। लड़कियां अब क्रिकेट, फुटबॉल, विज्ञान, तकनीक और राजनीति तक में अपनी छाप छोड़ रही हैं।
फिर भी कुछ जगहों पर लैंगिक असमानता और रूढ़िवादी सोच की दीवारें कायम हैं। महिलाओं को पहनावे से लेकर नौकरी तक हर स्तर पर सवालों का सामना करना पड़ता है। इस मानसिकता को बदलने के लिए सामाजिक संवाद और शिक्षा का प्रसार आवश्यक है।
महिलाओं के अधिकारों की कानूनी सुरक्षा
भारत में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हेतु कई कानून बनाए गए हैं — जैसे कि घरेलू हिंसा अधिनियम, दहेज निषेध अधिनियम, यौन उत्पीड़न निवारण अधिनियम आदि। इन कानूनों का उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षा देना, उनके आत्मसम्मान की रक्षा करना और समाज में समान स्थान सुनिश्चित करना है।
जरूरत है कि इन कानूनों का पालन कठोरता से हो और हर बालिका को यह बताया जाए कि वह अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा सकती है।
खिलती हुई कलियाँ हैं बेटियाँ, माँ-बाप का दर्द समझती हैं बेटियाँ,
घर को रोशन करती हैं बेटियाँ, लड़के आज हैं, तो आने वाला कल हैं बेटियाँ।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि अगर हम उपरोक्त सभी तथ्यों का विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट होता है कि बालिकाओं में असीम शक्ति, क्षमता और नेतृत्व कौशल निहित है।वे आज की सशक्त लड़की हैं- और कल की कार्यकर्ता, माँ, उद्यमी, संरक्षक, घर की मुखिया तथा राजनीतिक नेता भी।इसलिए समाज, सरकार और परिवार-सभी का दायित्व है कि वे बालिकाओं के लिए सुरक्षित, शिक्षित, सशक्त और स्वस्थ जीवनशैली सुनिश्चित करें। यही नए भारत की सबसे बड़ी आवश्यकता और समय की मांग है।
संकलनकर्ता एवं लेखक:क़र विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि, संगीत माध्यमा सीए (एटीसी)एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया (महाराष्ट्र)








