चंडीगढ़ / पंचकूला, 9 अक्टूबर – हरियाणा पुलिस के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या का मामला अब गहराते हुए गंभीर प्रशासनिक और राजनीतिक विवाद का रूप ले चुका है। मृतक अधिकारी के परिजनों ने डीजीपी शत्रुजीत कपूर, एसपी रोहतक, और एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ उत्पीड़न व आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप लगाए हैं। परिवार एफआईआर दर्ज करने की मांग पर अड़ा है और इसी कारण पोस्टमार्टम की प्रक्रिया तीन दिनों से ठप पड़ी हुई है।
घटना का प्रारंभिक विवरण
7 अक्टूबर की सुबह लगभग 9 बजे पंचकूला स्थित सरकारी आवास से वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार का शव बरामद हुआ। पुलिस को घटनास्थल से एक कथित सुसाइड नोट भी मिला, जिसमें विभागीय दबाव और मानसिक उत्पीड़न के संकेत बताए जा रहे हैं। प्रारंभिक जांच के बाद फॉरेंसिक टीम ने मौके का निरीक्षण किया और शव को पंचकूला के सिविल हॉस्पिटल की मोर्चरी में रखवाया गया।
परिवार का विरोध और प्रशासन की उलझन
शव मिलने के तुरंत बाद पुलिस प्रशासन ने पोस्टमार्टम की प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी की, लेकिन मृतक की पत्नी और परिजनों ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया। परिजनों का कहना है कि जब तक संबंधित अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की जाती, वे शव नहीं उठाने देंगे।
परिवार का आरोप है कि “पूरन कुमार को विभागीय और जातिगत उत्पीड़न झेलना पड़ा, जिसके चलते उन्होंने आत्महत्या जैसा कदम उठाया।” पत्नी ने सार्वजनिक रूप से कहा — “मेरे पति के साथ अन्याय हुआ है, हम बिना एफआईआर के शव नहीं लेंगे।”
वरिष्ठ अधिकारियों पर निशाना
घटना के बाद राज्य के पुलिस प्रमुख डीजीपी शत्रुजीत कपूर पर भी सवाल उठने लगे हैं। मृतक अधिकारी के सहयोगियों का कहना है कि वे लगातार विभागीय दबाव में थे और कई बार प्रशासनिक व्यवहार को लेकर असंतुष्ट थे। वहीं, एसपी रोहतक पर परिजनों ने सीधा आरोप लगाया है कि उन्होंने पूरन कुमार के साथ अनुचित व्यवहार किया और अनुचित रिपोर्टिंग के लिए मजबूर किया।
मामले के संवेदनशील स्वरूप को देखते हुए अब प्रशासनिक तंत्र में हलचल मच गई है। पुलिस मुख्यालय में बंद दरवाजों के भीतर कई दौर की बैठकों के बाद अब यह मामला सीधे गृह विभाग तक पहुंच गया है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और सामाजिक आक्रोश
इस मामले ने अब राजनीतिक रंग ले लिया है।
हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष ने इसे “दलित अधिकारी के साथ अन्याय” करार देते हुए राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन की आलोचना की है। वहीं, हरियाणा मानवाधिकार सुरक्षा मंच और कई सामाजिक संगठनों ने भी इसे “प्रशासनिक तंत्र की विफलता” बताया है।
सोशल मीडिया पर “#JusticeForPooranKumar” ट्रेंड कर रहा है और पुलिस महकमे के भीतर भी असंतोष की चर्चाएं तेज़ हैं।
जांच और प्रशासनिक दबाव
8 अक्टूबर को मृतक अधिकारी के परिजनों ने जिला प्रशासन को लिखित शिकायत सौंपी, जिसमें डीजीपी और एसपी रोहतक सहित तीन अधिकारियों के खिलाफ धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत एफआईआर की मांग की गई।
अब तक पुलिस विभाग ने इसे “आंतरिक जांच” बताते हुए चुप्पी साध रखी है। हालांकि सूत्रों के अनुसार, सरकार पर एसआईटी (Special Investigation Team) गठित करने का दबाव लगातार बढ़ रहा है।
इस बीच, पोस्टमार्टम प्रक्रिया रुकने से प्रशासन की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। सिविल हॉस्पिटल के अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि परिजनों की सहमति के बिना वे आगे नहीं बढ़ सकते।
कानूनी और विभागीय पहलू
कानूनी जानकारों के अनुसार, यदि परिवार एफआईआर पर अड़ा रहता है, तो राज्य सरकार को या तो मजिस्ट्रियल जांच के आदेश देने होंगे या स्वत: संज्ञान लेकर एफआईआर दर्ज करनी होगी।
मृतक अधिकारी दलित समुदाय से थे, इसलिए अब यह मामला राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और मानवाधिकार आयोग तक पहुंच सकता है।
विभागीय स्तर पर डीजीपी और एसपी रोहतक दोनों पर सस्पेंशन या ट्रांसफर कार्रवाई की संभावना भी जताई जा रही है।
संभावित अगले कदम
मामले की गंभीरता को देखते हुए गृह विभाग से जुड़े सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि 10 अक्टूबर तक कोई ठोस कदम उठाया जा सकता है। इसमें या तो एफआईआर दर्ज कराई जाएगी, या राज्य स्तर की एसआईटी गठित होगी।
यदि परिजन संतुष्ट नहीं हुए, तो वे न्यायिक जांच या सीबीआई जांच की मांग लेकर आगे बढ़ सकते हैं।
घटना का प्रभाव
पूरन कुमार की आत्महत्या ने हरियाणा पुलिस की कार्यसंस्कृति और वरिष्ठ अधिकारियों की कार्यशैली पर गहरे सवाल खड़े किए हैं। यह मामला प्रशासनिक जवाबदेही और पुलिस व्यवस्था की पारदर्शिता पर भी एक बड़ी परीक्षा बन गया है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सरकार ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया, तो यह मामला राज्य की कानून-व्यवस्था और शासन प्रणाली दोनों पर नकारात्मक असर डाल सकता है।
निष्कर्ष:
आईपीएस वाई. पूरन कुमार का आत्महत्या प्रकरण केवल एक व्यक्तिगत दुखद घटना नहीं, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था की संवेदनहीनता और जवाबदेही पर प्रश्नचिह्न है। जब तक मृतक परिवार को न्याय नहीं मिलता और दोषियों की स्पष्ट पहचान नहीं होती, यह मामला हरियाणा की सियासत और नौकरशाही – दोनों के लिए एक नैतिक कसौटी बना रहेगा।








