सत्य व्रत परिपालन और दिवाली

श्री गुरु शंकराचार्य पदाश्रित आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा ‘महेश’, पानीपत

वास्तव में संकल्प ही व्रत पालन होता है। केवल भूखा रहना या भोजन न करना व्रत नहीं है। चित्त की वृत्तियों को सुधारना और मन को एकाग्र करना ही वास्तविक व्रत है। इससे मनोबल की प्राप्ति होती है, जिसे व्रत कहा गया है। व्रत परिपालन में कुछ सिद्धांत और नियम होते हैं, जिनका अनुकरण करने से अभीष्ट सिद्धि होती है।

विषय दिवाली पर्व को लेकर चल रहा है। सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि दीवाली पर्व केवल और केवल श्री कमला जयंती पर्व है। सतयुग में देवासुर संग्राम के दौरान समुद्र मंथन में 14 रत्न निकले थे, जिनमें सबसे पहला रत्न श्री लक्ष्मी जी थीं। अतः यह पर्व उनकी जयंती का प्रतीक है।

आम जनमानस में यह धारणा है या उन्हें यह जानकारी दी जाती रही है कि इस दिन भगवान श्रीराम वनवास से अयोध्या लौटे थे। निश्चित रूप से लौटे थे, परंतु इन दोनों घटनाक्रमों में लगभग चार लाख बत्तीस हजार वर्षों का अंतर है। यह भी निश्चित है कि भगवान श्रीराम जी ने भरत जी को वचन दिया था कि 14 वर्ष के पश्चात अयोध्या लौटेंगे

भरत जी ने कहा था —
“चतुर्दशे हि सम्पूर्णे वर्षेदद्व निरघुतम्।
न द्रक्श्यामि यदि त्वां तु प्रवेक्ष्यामि हुताशनम्।।”

अर्थात — हे राम! यदि आप 14 वर्ष पूर्ण होने पर वापस न लौटे, तो मैं अपनी देह अग्नि में समर्पित कर दूंगा।

दूसरा प्रसंग यह कि जब भगवान श्रीराम जी वनवास के लिए प्रस्थान कर रहे थे, तब भी कार्तिक अमावस्या थी। उन्हें आदेश था कि अगली प्रातः बन गमन करें। श्री रामचरितमानस के अयोध्या कांड की 33वीं चौपाई में केकैयी महाराज दशरथ जी को कहती हैं —
“होतु प्रात मुनि बेष धरि जो न राम बन जांहि।
मोर मरन राउर अवस नृप समझिअ मन माहिं।।”

अर्थात — यदि राम प्रातःकाल बन को न जाएं तो मेरा जीवन व्यर्थ है।

अब प्रश्न उठता है कि क्या 20 अक्टूबर को अयोध्या में प्रातःकाल अमावस्या है? — नहीं। अमावस्या तिथि 20 अक्टूबर को अपराह्न 14:55 पर प्रारंभ हो रही है।

श्री वाल्मीकि रामायण के अनुसार, श्री हनुमान जी महाराज विप्र वेश में अमावस्या से एक दिन पूर्व चतुर्दशी के दिन भरत जी को यह शुभ समाचार देते हैं कि प्रभु श्रीराम अयोध्या लौट रहे हैं, ताकि भरत जी प्रातःकाल आत्मदाह न कर लें।

इसका प्रमाण लोक परंपरा में भी देखा गया है। 1965-66 के दशक में, जब मैं 6-7 वर्ष का था, मेरी दादी मुझे हाथ में रंग-बिरंगे फूलों और कागज़ों से सजे हुए दंड देकर यजमानों के घर भेजा करती थीं। वह हमें कहती थीं — “यजमान के द्वार पर यही बोलो — ‘श्री रामचन्द्र की जय’।”
हम बालक थे, लेकिन वह बचपन धर्म से जुड़ा हुआ था। तब समाज में धन और शिक्षा का अभाव था, पर श्रद्धा, विश्वास और धर्म पर आस्था अटूट थी।

आज का समय भिन्न है। सत्य की प्रतिष्ठा के स्थान पर कोलाहल और दिखावा अधिक है। बहुतों को यह ज्ञात ही नहीं कि दिवाली पर श्री लक्ष्मी जी, गणपति जी, देवी सरस्वती और कुबेर जी की पूजा की जाती है। भगवान श्रीराम के आगमन का आनंद तो हम मनाते हैं, किंतु श्रीराम दरबार की पूजा कभी नहीं की जाती।
क्या किसी ब्राह्मण ने दिवाली की पूजा में श्रीरामचरितमानस के आरंभ में वर्णित राम वंदना मंत्र का पाठ किया है? — नहीं। ऐसा किसी ग्रंथ में भी निर्दिष्ट नहीं है।

शास्त्रानुसार, 20 अक्टूबर को मध्याह्न में श्री हनुमान जी महाराज अयोध्या में भगवान श्रीराम जी के आगमन की शुभ सूचना देने आएंगे। भगवान श्रीराम प्रातःकाल कार्तिक कृष्ण अमावस्या, अर्थात 21 अक्टूबर को अयोध्या लौटेंगे

हम ब्राह्मण हैं, यह हमारा सौभाग्य है। साथ ही यह हमारा दायित्व भी है कि धर्म की रक्षा करें, सत्य का पालन करें, और समाज को कुरीतियों से बचाएं। मान–अपमान विधि के हाथ में है, किसी व्यक्ति विशेष के नहीं।

निष्कर्षतः — यह जनमानस के विवेक पर निर्भर है कि क्या रामायण में जो लिखा है वह असत्य है, या हम स्वयं सत्य से विमुख हो गए हैं
दो दिन पूर्व जब परम संत स्वामी श्री महाराज जी मेरे निवास पर पधारे, तो उन्होंने फोन पर आदेश दिया —
“दृढ़ प्रतिज्ञ बनो, सत्य के साथ नियमन का पालन करो।”

सत्यं शिवं सुन्दरम्

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Author: Bharat Sarathi

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