13 दिन बाद भी शुरू नहीं हुई खरीद, निजी व्यापारियों को औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर किसान
चरखी दादरी, जयवीर फ़ौगाट। हरियाणा सरकार के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद जिले में बाजरे की सरकारी खरीद 13 दिन बाद भी शुरू नहीं हो पाई है। इसके चलते किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का लाभ नहीं मिल पा रहा है और वे मजबूरीवश अपनी फसल निजी व्यापारियों को बेच रहे हैं। मंडियों में हजारों क्विंटल बाजरा सरकारी खरीद के इंतजार में पड़ा है, जबकि आढ़ती भी अब खरीद शुरू होने की संभावना कम बता रहे हैं।
गुणवत्ता बनी सबसे बड़ी बाधा
सरकार ने 23 सितंबर से बाजरा और मूंग की सरकारी खरीद शुरू करने के आदेश जारी किए थे। जिले के दादरी, बाढड़ा और झोझू कलां में खरीद केंद्र बनाए गए हैं, लेकिन हाल की बारिश से फसल की गुणवत्ता पर असर पड़ा है। मंडियों में अब तक करीब 35 हजार क्विंटल बाजरे की आवक हो चुकी है, मगर रंग और चमक कम होने के कारण बार-बार लिए गए सैम्पल फेल हो रहे हैं। नतीजतन, खरीद एजेंसियों ने सरकारी खरीद से हाथ खींच लिया है।
भावांतर योजना से भी राहत नहीं
सरकारी खरीद शुरू न होने से किसानों ने अब ई-खरीद पोर्टल के माध्यम से निजी हाथों में फसल बेचनी शुरू कर दी है।
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आवक बनाम खरीद: अब तक लगभग 35 हजार क्विंटल बाजरे की आवक के मुकाबले निजी क्षेत्र में केवल 20 हजार क्विंटल की खरीद ही हुई है।
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नुकसान की गणना: ई-पोर्टल के तहत बेचने वाले किसानों को भावांतर योजना के तहत 575 रुपये प्रति क्विंटल की भरपाई तो मिलेगी, पर फिर भी वे निर्धारित एमएसपी 2775 रुपये प्रति क्विंटल से वंचित रहेंगे।
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वास्तविक नुकसान: निजी व्यापारियों को फसल बेचने से किसानों को 100 से 200 रुपये प्रति क्विंटल तक का घाटा झेलना पड़ रहा है।
किसानों में असमंजस
खरीद एजेंसियों के पीछे हटने और गुणवत्ता में कमी के चलते किसान अब दुविधा में हैं—सरकारी खरीद के इंतजार में रहें या फिर नुकसान उठाकर अपनी फसल निजी व्यापारियों को बेच दें। इस देरी ने किसानों की आर्थिक स्थिति पर गहरा असर डाला है और मंडियों में बेचैनी बढ़ती जा रही है।








