दृढ़ संकल्प और भक्ति से ही पूर्ण होती है साधना
श्री गुरु शंकराचार्य पदाश्रित
आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा ‘महेश’
पानीपत। सत्य या मोक्ष की प्राप्ति के लिए मनुष्य को संकल्प, दीक्षा और दृढ़ता की आवश्यकता होती है। यही व्रत का सार है। व्रत शब्द का अर्थ प्रतिज्ञा और वचनबद्धता है। जिस प्रकार धर्म धृ धातु से उत्पन्न हुआ है — अर्थात धारण करने योग्य, उसी प्रकार व्रत वृ धातु से बना है — अर्थात वरण करने योग्य नियम।
भगवान श्रीराम ने शबरी को नवधा भक्ति के सिद्धांतों में पाँचवाँ सिद्धांत बताया —
“मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा,
पंचम भक्ति सी ग्यान परकासा।”
नवधा भक्ति के ये सिद्धांत धर्म के दस नियमों की तरह एक माला के मनकों की तरह हैं। यदि इनका पालन अधूरा रह जाए तो साधना अपूर्ण मानी जाती है।
नवधा भक्ति और प्रह्लाद का उपदेश
भक्त प्रह्लाद ने भी दृढ़ विश्वास और संकल्प को साधना की सबसे बड़ी शर्त माना। उन्होंने नवधा भक्ति के रूप में मार्ग प्रशस्त किया —
श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यं आत्मनिवेदनम्॥
नवरात्र: अहंकार संतुलन का पर्व
आज से शरद नवरात्र का शुभारम्भ हो रहा है। नवरात्र हमें तीन प्रकार के अहंकार — सात्विक, राजसिक और तामसिक — में संतुलन करना सिखाता है। ये तीनों क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और महेश को समर्पित हैं।
आदि शक्ति की उपासना के माध्यम से साधक अपने भीतर संतुलन साधता है। विजयादशमी के दिन असली दहन रावण का नहीं बल्कि अहंकार का होता है। यही कारण है कि भगवान श्रीराम ने भी नवरात्र में शक्ति की आराधना कर अहंकार रूपी रावण का वध किया था।
साहित्य और साधना
महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने अनामिका में लिखा —
“साधु साधु साधक धीरे धर्मधन धन्य राम,
कह लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम…
होगी जय होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन,
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।”
यह दर्शाता है कि शक्ति और संकल्प के संगम से ही विजय प्राप्त होती है।
नवदुर्गा का स्वरूप
नवरात्र में पूजित नवदुर्गा आदि शक्ति के विभिन्न रूप हैं, जिनमें काली, लक्ष्मी और सरस्वती का वास है।
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काली — शत्रुओं का संहार करती हैं।
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लक्ष्मी — समृद्धि प्रदान करती हैं।
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सरस्वती — ज्ञान का संचार करती हैं।
नवरात्र की साधना इन्हीं शक्तियों के आह्वान और संतुलन का पर्व है।
शुभकामनाएं
आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा ‘महेश’ (श्री गुरु शंकराचार्य पदाश्रित) ने श्रद्धालुओं को संदेश देते हुए कहा कि मन में दृढ़ संकल्प, इच्छा शक्ति और दीक्षा हो तो अष्ट सिद्धियां और नव निधियां स्वतः प्रकट होकर साधक की मनोकामना पूर्ण करती हैं।
उन्होंने श्रद्धालुओं से कामना की कि “हमारे जीवन में श्री दुर्गा जी की श्रद्धा, विश्वास, भक्ति और ज्ञान की ज्योति सदैव प्रज्ज्वलित रहे।”
भक्ति का दीपक ज्ञान की बाती,
जगमग ज्योति जले दिन राती।








