गुडग़ांव, 6 फरवरी (अशोक): शरीर नश्वर है। जो जन्म लेता है, उसका अंत भी आवश्यक है। अपने जीवन के दौरान मानव ने कितने भलाई के कार्य किए और समाज व समुदाय में अपनी कैसी पहचान बनाई, यही उसकी पहचान होती है। मनुष्य के
चले जाने के बाद ही उसकी अच्छाईयां व समाज के प्रति किए गए कार्य उसे अजर-अमर कर देते हैं। अपने जीवन काल में हर किसी को अच्छे कार्य करने चाहिए। इंसान जब पैदा होता है, तब वह खाली हाथ ही होता है और जब मृत्यु को प्राप्त होता है तो तब भी खाली हाथ ही जाता है। उक्त उद्गार आचार्यों, समाजसेवियों व धर्मप्रेमियों आदि ने रविवार को शिक्षाविद् शीतल प्रसाद
जैन की आयोजित श्रद्धांजलि सभा में व्यक्त किए। बड़ी संख्या में वक्ता उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए महरौली रोड स्थित कोरस बैंकट हॉल में पहुंचे।

वक्ताओं ने उनके जीवन से जुड़े संस्मरण साझा करते हुए कहा कि करीब 6 दशक तक वह शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत रहे। उन्होंने सदैव निर्धन वर्ग व जरुरतमंद परिवारों के बच्चों की सहायता पूरी ईमानदारी के साथ की ताकि वे शिक्षा ग्रहण कर देश-प्रदेश व समाज का नाम रोशन कर सकें। सामाजिक संस्थाओं से जुड़े जरुरतमंद परिवारों के बच्चों की निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था उन्होंने कई दशकों से अपने विद्यालय में कराई हुई है।

उनके पुत्रों शिक्षाविद् डा. नीरज जैन व आशु जैन ने घोषणा की कि शीतल प्रसाद जैन की स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले उन छात्रों को जो उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें मैरिट के अनुसार स्कॉलरशिप भी दी जाएगी। जैन समाज के आचार्यों व भजनोपदेशकों ने अपने भजनों के माध्यम से उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। श्रद्धांजलि सभा में बड़ी संख्या में विभिन्न सामाजिक, धार्मिक व शैक्षणिक संस्थाओं के प्रतिनिधि तथा क्षेत्र के गणमान्य व्यक्ति भी शामिल रहे। गौरतलब है कि गत 4 फरवरी को शीतल प्रसाद जैन का निधन हो गया था। वर्ष 1960 से वे शिक्षा को समर्पित रहे थे।

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