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क्या सीएम का दौगड़ा अहीर में रात्रि पड़ाव एक चूक था ?

सीहमा को उप-तहसील बनाने से दौंगड़ा के लोग खफा, सीएम और विधायक का विरोध
दौंगड़ा अहीर के लोग अतीत से उप तहसील बनाने को लेकर आंदोलित थे
भारी पुलिस बल की बदौलत आश्वासन का लॉलीपॉप देकर निकले सीएम

भारत सारथी /कौशिक

नारनौल । जिला महेंद्रगढ़ में जिस बात का डर था आखिर वह होकर ही रहा। नांगल चौधरी में जनसंवाद कार्यक्रम से पूर्व पुलिस द्वारा लोगों को पाबंद किया जाना चर्चा में रहा। सीएम को जहां वाही वाही मिलनी चाहिए थी, वहां हाय हाय मुर्दाबाद सुनने को मिला। जनसंवाद कार्यक्रम से भाजपा जनता से कितना जुड़ पाई यह तो समय तय करेगा। लेकिन इतना जरूर है की राजनीतिक सूझबूझ का अभाव प्रदेश नेतृत्व में स्पष्ट दिखाई दे रहा है। सीएम के व्यवहार और निर्णय को लेकर प्रदेश में व्यापक विरोध देखने को मिल रहा है उससे अछूता जिला महेंद्रगढ़ भी नहीं रहा।

वीरवार को सीएम मनोहर लाल खट्टर ने गांव सीहमा में आयोजित जन संवाद। कार्यक्रम में सीहमा को उप-तहसील का दर्ज़ा देने की घोषणा। इससे सीहमा और साथ लगते गांव के लोग तो खुश हुए किन्तु महज 6-7 किलोमीटर दूर स्थित अटेली विधानसभा के गांव दौंगडा अहीर के लोग खफा हो गए। राजनीतिक बिसात पर चला गया गांव फेल हो गया। दोंगडा अहीर के लोग काफी दिन से दोंगडा को विकास खंड या उप तहसील बनाने की मांग को लेकर आन्दोलित थे। विधायक सीताराम यादव यह मांग सीएम और सदन दोनों जगह पर रख चुके थे। इसे पूरा कराने में अतीत में विधायक रही तथा हरियाणा के डिप्टी स्पीकर संतोष यादव भी पर्यतनशील थी।

केंद्रीय राज्यमंत्री राव इंदरजीत सिंह वर्ष 2018 में दौंगड़ा अहीर में ही रैली करके इसे उप तहसील बनाए जाने की वकालत कर चुके हैं। दोनों ओर से प्रयास जारी थे किंतु बात नहीं बन पाई लेकिन ऐसा नहीं था कि मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया हो।‌राजनेताओं द्वारा अपने हित में लिए गया निर्णय कई बार जनता को नागावार गुजरता है और दौगड़ा अहीर में हुई सरकार छीछलेदारी उसी की परिणीति है। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रशासन, संगठन और राजनेताओं ने इस बात को अनदेखा क्यों किया और मुख्यमंत्री का पड़ाव उस गांव में क्यों किया? सीएम की सुरक्षा में इस चूक का जिम्मेदार आखिर कौन है? इसकी जांच आवश्यक है।

बात करे गुरुवार रात के हालात की जब तक मुख्यमंत्री यहां पहुंचते उससे पहले सीहमा को उनके द्वारा उप तहसील बनाए जाने की घोषणा की जानकारी गांव तक पहुंच गई थी।मुख्यमंत्री का ठहराव भाजपा के पुराने कार्यकर्ता दोलाराम यादव के पुत्र अशोक के मकान पर किया गया था । वहां उनका स्वागत करने के लिए भाजपा के मंडल अध्यक्ष अमित, प्रकोष्ठों के पदाधिकारियों व प्रमुख ग्रामीण उपस्थित थे।‌ लेकिन जैसे ही समाचार उनके कानों तक पहुंचा लोगों ने खुसर पुसर कर इसका विरोध करना शुरू कर दिया। इसी बीच विधायक सीताराम सीएम के साथ आए तो वहां उपस्थित ग्रामीण प्रतिनिधिमंडल ने उनसे बात करने की चेष्टा की। किंतु विधायक सीएम के साथ अंदर चले गए। बाहर लोगों को लगा कि उनकी बात पर विचार विमर्श हो रहा है। काफी देर तक जब विधायक बाहर नहीं निकले और बाद में उनसे बात हुई तो उन्होंने उन्हें रात हो जाने का हवाला देते हुए सुबह सीएम से मिलने का आश्वासन दिया।

इसके बाद तस्वीर एकदम बदल चुकी थी। शुक्रवार सुबह 7 बजे गांव के मंदिर के बाहर भारी संख्या में ग्रामीण एकत्रित हो गए । उन्होंने विभिन्न गलियों से नारे लगाते हुए जिस मकान में मुख्यमंत्री मनोहरलाल ठहरे थे, उसके बाहर आकर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। लोगों के विरोध को देखते हुए पुलिस और प्रशासन के हाथ पांव फूल गए और आनन फानन में अतिरिक्त पुलिस बल की व्यवस्था की जाने लगी।‌ इसी बीच तनाव की स्थिति को बढ़ता देख भारी संख्या में पुलिस बल गाड़ियों में वहां पहुंचा। उस समय ग्रामीण सरकार और सीएम दोनों के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे।

इसी दौरान पुलिस अधीक्षक पहुंचे उन्होंने लोगों को समझाने का प्रयास किया लोगों ने एक न सुनी। इस विरोध के बीच मौके पर पहुंचे विधायक सीताराम ने भी लोगों को समझाने की काफी कोशिश की पर जनता ने उनकी कोई बात नहीं सुनी तो उन्हें सुरक्षाकर्मी बमुश्किल से भीड़ से निकाल कर अंदर सीएम के ठिकाने तक ले गए। तनाव बढ़ता गया और पुलिस बल भी बढ़ता गया। इसी बीच हरियाणा खुफिया विभाग के डीजी आलोक मित्तल वहां पहुंचे। उन्होंने अधिकारियों से स्थिति की जानकारी ली, अंदर जाकर मुख्यमंत्री से बात की। डीजी सीआईडी प्रमुख भी गांव में पहुंचे। पुलिस ने रस्से लगाकर भीड़ को घर से दूर किया। मुख्यमंत्री ने पहले ग्रामीणों से मिलने से ही इनकार कर दिया था, लेकिन बाद में परिस्थिति बिगड़ती देख राजनीतिक हालात के मद्देनजर वह बातचीत के लिए मान गए। प्रशासन ने 11 लोगों का प्रतिनिधिमंडल तैयार किया, जिससे मुख्यमंत्री ने बातचीत की और अपने जाने का मार्ग सरल किया।

उसके बाद 11 सदस्य प्रतिनिधि मंडल को अंदर मकान में बातचीत के लिए बुलाया गया। भीतर जब बातचीत चल रही थी इसी बीच पूर्व शिक्षा मंत्री रामविलास शर्मा भी गांव पहुंचे तो वह बिना किसी से बात किए अंदर वार्तालाप कक्ष की ओर चल दिए। ग्रामीण प्रतिनिधिमंडल से बात समाप्त होते ही मुख्यमंत्री के बाहर आने की तैयारी शुरू हुई सुरक्षाकर्मियों ने बीच का रास्ता बनाया बाहर आकर मुख्यमंत्री ने बेतुकी सफाई दी कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि दौगड़ा अहीर अटेली में आता है और सीहमा नारनौल में आता है। अधिकारियों के सिर उन्होंने बड़ी सरलता से ठीकरा फोड़ दिया। उन्होंने कहा कि आज मुझे इसके बारे में जानकारी मिली है। मुख्यमंत्री ने कहा कि सीहमा और दौगड़ा ही दोनों ही जगह पर उप तहसील बनवाने के लिए फिजिबिलिटी रिपोर्ट मंगाई जाएगी। उन्होंने कहा कि अभी एक महीने बाद उनका अटेली विधानसभा का दौरा है उस समय तक रिपोर्ट आ जाएगी तब उप तहसील बनाने की घोषणा करके जाएंगे।

मुख्यमंत्री के संबोधन के दौरान ग्रामीण विरोध करते रहे और सरकार के खिलाफ नारेबाजी होती रही ग्रामीणों का कहना था कि दौंगड़ा अहीर को उप तहसील बनाने की घोषणा आज ही की जाए। घोषणा करते समय मुख्यमंत्री भी खुश नहीं थे और घोषणा सुनते समय ग्रामीण भी खुश नहीं थे।

भारी पुलिस बल के सहारे उनके जाने का रास्ता बनाया गया। लगभग पौने ग्यारह बजे मुख्यमंत्री सकुशल वहां से निकल गए।‌जिससे पुलिस, जिला प्रशासन और सरकार ने राहत की सांस ली।

यहां यह उल्लेखनीय है कि सीहमा नारनौल हलके में आता है, जबकि दोंगडा अहीर अटेली हलके का गांव है। मुख्यमंत्री के जन संवाद कार्यक्रम में अटेली हल्का शामिल नहीं है, शेष तीनो हलके शामिल हैं। नारनौल के विधायक की पैरवी पर सीएम ने सीहमा को उप तहसील बनाने की घोषणा का दांव खेल कर भाजपा को मजबूती देने की कोशिश की। सीएम का यही पाशा उल्टा पड़ गया जिससे दोंगडा अहीर के लोगों की नाराजगी बढ़ गई। अगर भविष्य में इसकी भरपाई ने नहीं की गई तो अटेली में भाजपा को भारी नुकसान हो सकता है।

यहां चूक यह भी हुई कि मुख्यमंत्री का रात्री विश्राम भी दौगडा अहीर में करवा दिया गया। शायद इसके पीछे अहिरवार की शांत प्रवृत्ति और जनता में विरोध न करने की भावना को सरकार प्रशासन ने समझ लिया। जिससे ग्रामीणों को विरोध का पूरा अवसर मिला और रात भर पुलिस और प्रशासन को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। गनीमत रही की विरोध शांतिपूर्ण रहा, अन्यथा पुलिस को भी बल प्रयोग करना पड़ता और अनावश्यक तनाव बढ़ता। यदि मुख्यमंत्री का रात्री विश्राम किसी और गांव में होता तो, निश्चित रूप से विरोध इतना ज्यादा नहीं होता और पुलिस को इतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ती। ऐसा लगता है कि उप तहसील की घोषणा से पूर्व भी कोई होमवर्क नहीं किया गया, अन्यथा प्रशासन और सरकार के साथ-साथ पार्टी को भी पता होता कि दौंगडा अहीर के लोग इसका विरोध कर सकते हैं। यह चूक अनजाने में हुई या जानबूझकर यह जांच का विषय है। अनजाने में तो इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि अतीत में विधायक पूर्व विधायक और केंद्रीय मंत्री ने इस मामले को उठाया था। ऐसे में मुख्यमंत्री का रात्रि विश्राम किसी अन्य गांव में किया जा सकता था।

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